क्यों मनाया जाता है हरतालिका तीज व्रत (hartalika teej kyu manaya jata hai), Hartalika Teej 2023 Vrat Katha, हरतालिका तीज व्रत का इतिहास क्या है? हरतालिका तीज का महत्व क्या है और हरतालिका तीज का व्रत कैसे रखा जाता है। 2023 में हरतालिका तीज का व्रत कब है? हरतालिका तीज 2023 तारीख और मुहूर्त क्या है? हरतालिका तीज के नियम क्या क्या है? अगर आप इन सवालों के जवाब जानना चाहते हैं तो इस पोस्ट को अंत तक जरूर पढ़ें।
हरतालिका व्रत को हरतालिका तीज या फिर तीजा भी कहा जाता है। यह व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। इस दिन कुंवारी कन्यााएं और सुहागिन महिलाएं सच्चे मन से भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा करती हैं।
भादो माह में हरतालिका तीज का व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। सुहाग की रक्षा और सुयोग्य वर की प्राप्ति के लिए हरतालिका तीज (Hartalika teej Vrat 2023) का व्रत सुहागिन महिलाएं और कुंवारी लड़कियां जरूर रखती हैं। कहते हैं मां पार्वती ने देवो के देव महादेव को पाने के लिए हरतालिका व्रत किया था। ऐसी मान्यता है की इस व्रत के प्रभाव से पति को दीर्धायु और सुखी जीवन का वरदान प्राप्त होता है।
यह व्रत प्रमुख तौर पर उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल और बिहार में मनाया जाने वाला व्रत है। यह व्रत करवाचौथ से भी ज्यादा कठिन माना जाता है क्योंकि जहां करवाचौथ में चांद देखने के बाद व्रत तोड़ दिया जाता है वहीं इस व्रत में पूरे दिन निर्जल व्रत किया जाता है और अगले दिन पूजन के पश्चात ही व्रत तोड़ा जाता है।
Hartalika Teej 2023: हरतालिका तीज क्यों मनाई जाती है| Importance and Significance of Hartalika Teej
hartalika teej kyu manaya jata hai : Hartalika Teej 2023 Date, Pujan Samagri List: हिंदू धर्म में महिलाओं के लिए हरतालिका तीज व्रत (Hartalika Teej 2023) बेहद खास है। यह व्रत सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र, सुखद वैवाहिक जीवन और उनके कल्याण के लिए रखती हैं। वहीँ कुवांरी कन्यायें हरतालिका तीज व्रत (Hartalika Teej 2023 Vrat) सुयोग्य और मनचाहा वर प्राप्ति के लिए करती हैं।
इस व्रत में भगवान शिव और माता पार्वती की विधि –विधान से पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए उपवास रखा था और यह दिन उनके मिलन का प्रतीक है। हरतालिका तीज का त्योहार (Hartalika Teej 2023 Tyohar) मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में मनाया जाता है।
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हरतालिका तीज व्रत कब है | Hartalika Teej 2023 kab hai
पंचांग के मुताबिक, हरतालिका तीज व्रत हर साल भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। इस साल यह व्रत 18 सितम्बर 2023 दिन सोमवार को रखा जाएगा। इस व्रत में सुहागिन महिलाएं 16 श्रृंगार करके भगवान शिव और माता पार्वती की विधिवत पूजा अर्चना करती हैं और उन्हें 16 श्रृंगार की चीजों के साथ अन्य वस्तुएं अर्पित करती हैं। मान्यता है कि इन चीजों के साथ पूजा करने से हर मनोकामना पूरी होती है। आगे इस लेख में हम जानेंगे की इस पूजा में किन-किन चीजों की आवश्यकता होती है।
हरतालिका तीज पूजन सामग्री लिस्ट (Hartalika Teej 2023 Pujan Samagri List)
- भगवान शिव और देवी पार्वती की मूर्तियां
- घी, दीपक, अगरबत्ती और धूप
- पान 2 या 5, कपास की बत्ती, कपूर
- सुपारी के 2 पीस, दक्षिणा
- केले का फल, पानी के साथ एक कलश, आम और पान के पत्ते, एक चौकी
- केले का पत्ता, बेल के पत्ते, धतूरे का फल और फूल, सफेद मुकुट एवं फूल
- साबुत नारियल -4, शमी के पत्ते
- चंदन, जनेऊ, फल, नए कपड़े का एक टुकड़ा
- सभी वस्तुओं को एक साथ रखने के लिए एक ट्रे
- काजल, कुमकुम, मेहंदी, बिंदी, सिंदूर, चूड़ियाँ
- पैर की अंगुली की अंगूठी (बिछिया)
- कंघा, कपड़े और अन्य सामान, आभूषण
- चौकी को ढकने के लिए एक साफ कपड़ा, पीला/नारंगी/लाल
हरतालिका तीज का महत्व (hartalika teej kyu manaya jata hai)
इस व्रत की मान्यता हैं की सौभाग्यवती महिलाएं अपने सुहाग को अखंड बनाए रखने और अविवाहित युवतियां अपने इच्छित वर पति को पाने के लिए यह व्रत करती हैं। ऐसा माना जाता है सबसे पहले यह व्रत माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए रखा था। उन्हीं का अनुसरण करते हुए महिलाएं माता पार्वती और शिवजी जैसा दांपत्य जीवन पाने के लिए यह व्रत करती हैं।
ऐसे रखा जाता है हरतालिका तीज का व्रत
इस दिन व्रत करने वाली सुहागन स्त्रियां सूर्योदय से पूर्व ही उठ जाती हैं और स्नान-ध्यान करके पूरा श्रृंगार करती हैं। पूजन के लिए केले के पत्तों से मंडप बनाकर गौरी−शंकर की प्रतिमा स्थापित की जाती है। इसके साथ पार्वती जी को सुहाग का सारा सामान चढ़ाया जाता है। पूरी रात महिलाएं एवं युवतियां सोती नहीं हैं। रात में भजन, कीर्तन करते हुए जागरण कर तीन बार आरती की जाती है और शिव पार्वती विवाह की कथा सुनी जाती है।
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हरतालिका तीज की कथा |Hartalika Teej 2023 Vrat Katha
हरतालिका तीज के व्रत के माहात्मय की कथा भगवान शंकर ने पार्वती को उनके पूर्व जन्म का स्मरण कराने के लिए सुनाई थी। जो की इस प्रकार है। हे पार्वती तुमने एक बार हिमालय पर गंगा तट पर अपनी बाल्यावस्था में बारह वर्ष की आयु में अधोमुखी होकर घाेर तप किया था।
तुम्हारी इस कठोर तपस्या को देखकर तुम्हारे पिता को बड़ा क्लेश होता था। एक दिन तुम्हारी तपस्या और तूम्हारे पिता के क्लेश के कारण नारद जी तुम्हारे पिता के पास आये और बोले हे राजन विष्णु भगवान आपकी कन्या सती से विवाह करना चाहते हैं। उन्होने इस कार्य हेतु मुझे आपके पास भेजा है।
इसके बाद देवर्षि नारद जी भगवान विष्णुजी के पास जाकर बोले की हिमालयराज अपनी पुत्री सती का विवाह आपसे करना चाहते है। विष्णु जी भी इस बात से राजी हो गए। जब तुम घर लौटी तो तुम्हारे पिता ने तुम्हें बताया की तुम्हारा विवाह विष्णुजी से तय कर दिया गया है। यह बात सुनकर तुम्हे अत्यन्त दुख हुआ, और तुम जोर-जोर से विलाप करने लगी।
जब तुम्हारी सखी ने तुमसे तुम्हारे रोने का कारण पूछा तो तुमने उसे सारा वृतांत सुना दिया और कहा की मैं भगवान शंकर से विवाह करना चाहती हूँ और उसके लिए मैं कठोर तपस्या करके उन्हे प्रसन्न कर रहीं हूँ। इधर मेरे पिता विष्णुजी के साथ मेरा विवाह कराना चाहते हैं। तुम मेरी सहायता करो नहीं तो मैं अपने प्राण त्याग दूँगी।
तुम्हारी सखी बड़ी दूरदर्शी थी। वह तुम्हें एक घनघोर जंगल में ले गयी और कहा की तुम यहा पर भगवान शिव को पाने के लिए घोर तपस्या कर सकती हो। इधर तुम्हरे पिता हिमालयराज तुम्हें घर में न पाकर बहुत ही चिन्तित हुए और कहने लगे की मैं विष्णुजी से सती का विवाह करने का वचन दे चुका हूँ और वचन भंग की चिन्ता में तुम्हारे पिता हिमालयराज मूर्छित हो गए।
हर तरफ तुम्हारी खोज होती रही और तुम अपनी सहेली के साथ नदी के तट पर एक गुफा में मरी तपस्या करने में लीन थी। इसके बाद भाद्रपद शुक्ला की तृतीया को हस्त नक्षत्र में तुमने रेत का शिवलिंग स्थापित करके व्रत किया और पूजन करके रात्रि को जागरण किया। तुम्हारे इस कठिन तप व्रत से मेरा आसन डोलने लगा और मेरी समाधि टूट गई।
मैं तुरन्त तम्हारे पास पहुचां और वर मॉंगने का आदेश दिया। तुम्हारी मॉंग तथा इच्छानुसार तुम्हें मुझे अर्धागिनी के रूप में स्वीकार करना पड़ा और तुम्हे वरदान देकर मै कैलाश पर्वत पर चला गया। प्रात: होते ही तुमने पूजा की समस्त सामग्री को नदी में प्रवाहित करके अपनी सहेली सहित व्रत का पारण किया। उसी समय तुम्हें खोजते हुए हिमालय राज उस स्थान पर पहुँच गए और रोते हुए तुम्हारे घर छोड़ने का कारण पूछा।
तब तुमने अपने पिता को बताया की मै तो शंकर भगवान को अपने पति रूप में वरण कर चुकी हूँ। परन्तु आप मेरा विवाह विष्णुजी से करवाना चाहते थे। इसी लिए मुझे घर छोडकर आना पड़ा। मैं अब आपके साथ घर इसी शर्त पर चल सकती हूँ, की आप मेरा विवाह विष्णुजी से न करके भगवान शंकर जी करेगें। तुम्हारे पिता तुम्हारी बात मान गए और शास्त्रोक्त विधि द्वारा हम दोनों को विवाह के बन्धन में बॉंध दिया।
इसलिए इस व्रत को ”हरतालिका” इसलिए कहते है की पार्वती की सखी उसे पिता के घर से हरण कर घनघोर जंगल में ले गई थी। ”हरत” अर्थात हरण करना और ”आलिका” अर्थात सखी, सहेली। तो हरत+आलिका (हरतालिका) और भगवान शंकर जी ने माता पार्वती को यह भी बताया की जो कोई स्त्री इस व्रत को परम श्रद्धा से करेगी उसे तुम्हारे समान ही अचल सुहाग प्राप्त होगा।
हरतालिका तीज के नियम (Hartalika Teej vrat niyam)
हरतालिका तीज का व्रत कठिन व्रत माना जाता है। हरतालिका तीज पर निर्जला व्रत किया जाता है। हरतालिका व्रत के कुछ खास नियम होते हैं। इनका पालन करना आवश्यक है। इस दिन अन्न, जल का त्याग करना पड़ता है। बुजुर्ग और गर्भवती महिलाओं के लिए फलाहार की जरूर छूट है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन व्रतधारी को दिन और रात में सोने की मनाही है।
प्रत्येक पहर में भगवान शंकर की पूजा और आरती करें। इस दिन घी, दही, शक्कर, दूध, शहद का पंचामृत चढ़ाएं। सुहागिन महिलाओं को सिंदूर, मेहंदी, बिंदी, चूड़ी, काजल सहित सुहाग पिटारा दें। अगले दिन भोर में पूजा करके व्रत का उद्यापन करें।
रात्रि में जागरण कर भजन कीर्तन करें, महादेव और मां पार्वती का स्मरण करे। हरतालिका तीज के व्रत एक बार शुरू कर लिया जाए तो इसे बीच में छोड़ा नहीं जाता। अगर किसी कारणवश ये व्रत न कर पाए तो इसका उद्यापन कर घर में दूसरी महिला को दे दें।
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हरतालिका तीज 2023 तारीख और मुहूर्त | Hartalika Teej 2023 shubh muhurat
हिंदू पंचाग के अनुसार हरितालिका तीज की शुरुआत 17 सितंबर को 11 बजकर 8 मिनट से तृतीया तिथि शुरू होकर अगले दिन 18 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 39 मिनट तक होगा। उदया तिथि के अनुसार से यह व्रत 18 सितंबर को ही रखा जाएगा। पूजा की बात करें तो 18 सितंबर को सुबह 6 बजे से रात के 8 बजकर 24 मिनट तक का समय भगवान शंकर और पार्वती जी की पूजा के लिए उत्तम समय है।
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