हमारी गर्भावस्था यात्रा और हमारे माता – पिता बनने का एहसास (My Pregnancy Journey)

माँ बनना हर औरत के जीवन का सबसे सुखद एहसास होता है। एक औरत तभी सम्पूर्ण कहलाती है जब वो एक माँ बनती है। पहली बार माँ बनने का अहसास बहुत ही अलग होता है। कुदरत ने माँ बनने का यह खूबसूरत तोहफा सिर्फ औरतों को ही दिया है। आज के ब्लॉग में मैं आपसे हमारी गर्भावस्था यात्रा और हमारे माता – पिता बनने का एहसास (My Pregnancy Journey) को साझा करने वाली हूँ।

मातृत्व का सुख, उसका एहसास सब रिश्तो से अलग होता है। इसमें एक औरत खुद के अंदर से एक जिव को जन्म देती है। इस दौरान औरत को बेहद अनोखा और अलग सा एहसास होता है जिसे एक गर्भवती के लिए शब्दों में बताना बहुत मुश्किल है।

माता पिता बनना ईश्वर का वरदान है यह एहसास बाकि सारे एहसासों से अलग होता है। जब एक बच्चे का जन्म होता है तो उस बच्चे के जन्म के साथ साथ माता-पिता का भी बचपन लौट आता है। आप उस नन्ही सी जान की किलकारियों के आगे अपने सारे दुःख सारी तकलीफें भूल जाते है।

जब पहली बार अपनी गर्भावस्था जाँच के लिए हम प्रेग्नेंसी किट का इस्तेमाल करते हैं और उस प्रेग्नेंसी किट में तो लाइनें दिखती हैं तो दिल ख़ुशी से झूठ उठता है। माता-पिता बनने की खबर और उसका एहसास एक असीमित खुशी देने वाला पल होता है।

जैसे जैसे गर्भस्य शिशु आपके गर्भ में साँस लेता है, जब आप पहली बार उसकी धड़कन सुनते हैं, उसको सोनोग्राफी के जरिये बढ़ता हुआ देखते हैं, तो यक़ीनन ये पल खुशियों भरा होता है। यह कोई छोटी सी बात नहीं है, अब आप एक नए जिव को इस दुनिया में लाने वाले हैं।

 

हमारी गर्भावस्था यात्रा और हमारे माता – पिता बनने का एहसास (My Pregnancy Journey)

माता – पिता बनने का पहला एहसास

माँ बनना अपने आप में ही सौभाग्य की बात होती है। जब मुझे पता चला कि मैं मां बनने वाली हूं उस वक्त मुझे ऐसा लग रहा था जैसे पता नहीं मुझे कौनसी ख़ुशी मिल गयी। मेरी ख़ुशी और हंसी का ठिकाना ही ना था। ऐसा लग रहा था जैसे मुझे दुनिया भर की सारी ख़ुशी मिल गई।

जब मुझे यह बात पता चली उस वक़्त मेरे पति भी मेरे साथ ही थे। हम दोनों ने एक दूसरे को बधाई दी। फिर हमने अपने घरवालों को खबर दी। सब बहुत खुश हुए और फिर नन्हे मेहमान के आने की तयारी करने लगे। गर्भावस्था के 8 महीने तक मैं अपने पति के साथ ही रही उसके बाद मैं अपने माँ के घर दिल्ली चली गयी। वही मेरी डिलीवरी हुई। पर इन 8 महीनो में मेरे पति ने मेरा पूरा ध्यान रखा। मेरा खाना पीना, सोना, टहलना इत्यादि का पूरा ध्यान रखते थे।

हम औरतें माँ बनती है, हमारे अंदर 9 महीने तक एक जिव पलता है। हम सोचते है सारी परेशानी हम अकेले ही झेलते है पर ऐसा नहीं है। हम इन सब में एक पिता की एहमियत को भूल जाते है। बच्चे के आने का मतलब सिर्फ खुशियों का आना ही नहीं होता बल्कि जिम्मेदारियों का आना भी होता है।

जैसे ही बच्चा अपने माँ के गर्भ में आता है वैसे ही पिता की जिम्मेदारियां शुरू हो जाती है। माँ बच्चे से Emotionally जुड़ती है, पिता के Emotions माँ से बस थोड़े कम होते है क्यूंकि उनको उस बच्चे के पालन पोषण, पढाई लिखाई, खाना पीना इत्यादि सबके बारे में सोचना पड़ता है।

पुरे 9 महीने के दौरान माँ क्या खाएगी पीयेगी जिससे बच्चा स्वस्थ रहे, इसके लिए होने वाले पिता, जी जान से माँ और बच्चे की देखभाल में लगे रहते है। अगर वो 9 महीने माँ के लिए आसान नहीं है तो पिता के लिए भी ये सब इतना आसान नहीं है।

उनको भी खुद को मानसिक रूप से तैयार करना पड़ता है क्यूंकि बच्चे की जिम्मेदारी उठाने के लिए उनको वित्तीय रूप से भी तैयार होना होता है जबकि माँ अपने बच्चे से शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से खुद ही जुड़ी होती है।

 

Life is a journeyहमारी माता-पिता बनने की यात्रा

मेरी गर्भावस्था में कोई भी परेशानी नहीं थी। सब कुछ एक दम Normal था। मासिक चक्र का रुक जाना गर्भावस्था की पहली निशानी मानी जाती है। इसके बाद कब्ज़ (Constipations) की शिकायत होने लगती है। वैसे जब मेरा मासिक चक्र रुका तो मुझे लग रहा था की मैं Pregnant हूँ पर मुझे समझ नहीं आ रहा था की मुझे Constipations क्यों हो रहे है।

मैं बहुत परेशान रहती थी। आधा एक घंटा बाथरूम में बीतता था। कभी कभी तो रोती भी थी क्यूंकि Constipation बहुत हो गया था। फिर हमने Decide किया की हम डॉक्टर के पास जायेंगे। हम बिना UPT(Urine Pregnancy Test) के डॉक्टर के पास चले गए। वहाँ डॉक्टर ने UPT कराई फिर मैं sure हुई की मैं pregnant हूँ।

पहली बार मेरा सोनोग्राफी डेढ़ महीने पे हुआ। सोनोग्राफी में मैंने देखा एक छोटू सा बेबी जो उस वक़्त सिर्फ एक मूंग के दाने के बराबर रहा होगा, जिसकी सिर्फ धड़कन ही सुनी जा सकती थी। क्यूंकि सबसे पहले बच्चे का दिल ही बनता है। उतना छोटू सा था वो तब भी उसे देख कर ही उसपर इतना प्यार आ रहा था।

इसके बाद दूसरे महीने के अंत में मैंने अपने बच्चे की दिल की धड़कन सुनी। वो एहसास बहुत खास था। दूसरे महीने के अंत के बाद मुझे तीसरे और चौथे महीने तक थोड़ा थोड़ा जी मिचलाता था पर मुझे कभी उल्टी नहीं हुई। बड़े बुज़ुर्ग ने बताया की उल्टी ना होना अच्छा है। थोड़ा बहुत उल्टी चलता है पर ज्यादा हुआ तो नुकसान ही है।

मैं अपना बहुत ध्यान रखती थी। अपने गर्भस्य शिशु से बातें किया करती थी। पूरी गर्भावस्था के दौरान भूख बहुत लगती है तो इसलिए मैं भर भर के खाना खाती थी पर सिर्फ healthy खाना ही खाती थी। पांचवे महीने के बाद मैंने अपने Tummy में हलचल महसूस की। रात को सोते हुए बच्चे बहुत Movements करते है।

कई बार मेरे पति जब रात को उठा करते थे तो उन्होंने कई बार देखा मेरा Tummy इधर उधर ऊपर निचे होते हुए। मैं सुबह उठती थी तो वो मुझे बताते थे की मैंने रात में ऐसे ऐसे देखा। छठे – सातवें महीने में हलचल थोड़ी बढ़ जाती है और आठवें – नौवें महीने में तो इतने ज्यादा Movements होते है की क्या बताऊँ।

बहुत लात मरता था मेरा बच्चा, बहर वक़्त उछल-कूद करता रहता Tummy में, ऐसा लगता था उसे आराम से रहना आता ही नहीं है। मैं उस वक़्त जॉब करती थी मैंने आठवें महीने तक जॉब किया था। ऑफिस की कुर्सी पे बैठे बैठे भी कई बार लात घुसे खाये है मैंने।

आखिरकार मेरा डिलीवरी का वक़्त आया। मेरी डिलीवरी भी नार्मल ही हुई। जब पहली बार मैंने अपने बच्चे को अपनी बाँहों में लिया उस एहसास को बता पाना किसी माँ के लिए संभव नहीं है। वो एहसास बहुत ही ज्यादा खास होता है। उस नन्हे मुन्हे को देख कर सबके चेहरों पे मुस्कान थी सब बहुत खुश थे।

छोटे छोटे हाथ – पैर, छोटू सा चेहरा, छोटी सी कंचु सी आंखें। मैं तो बस उसे देखे ही जा रही थी। 2 घंटे बाद मेरी माँ ने बोला इसे दूध पिलाओ भूख लगी होगी इसको। मैंने बोला दूध कैसे पिलाऊँ कहाँ है दूध? मेरी माँ ने बोला दूध आ गया होगा छाती में महसूस करो, देखो और पिलाओ इसको।

मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था फिर भी मैंने उसको छाती से लगाया उसने छोटे से मुँह से दूध खींचना शुरू किया। उस वक़्त मैं ये सोच रही थी भगवान ने भी क्या कुदरत रचा है। माँ की छाती में दूध और बच्चे को इसे पिने का हुनर जन्म से ही सीखा के भेजा है। हर किसी को अपना पेट भरना आता है। इस नन्ही सी जान को पता है की मैं अपना पेट कैसे भरु।

वो दिन था और आज का दिन है मेरा बच्चा 2.5 साल का हो गया। किसी ने कहा था जब ये बड़ा हो जाएगा तो इसके छोटे छोटे हाथ पैर, इसकी तुतलाती बोली, इसका बिल्ली बन कर चलना, हर वो चीज जो इसने पहली बार करी होगी, सब बहुत याद आएंगे।

वही हो रहा है बहुत याद आते है वो पल जब ये कूं कूं करता था, जब बिल्ली बन के चलता था हर चीज बहुत याद आती है। यही ज़िन्दगी है (Life is a journey)।

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यह तो थी हमारी हमारी गर्भावस्था यात्रा और हमारे माता – पिता बनने का एहसास (My Pregnancy Journey) जिसे मैंने आपसे साझा किया है। अगर आप भी माता पिता है तो ऐसे एहसास आपने भी महसूस किये होंगे। इस लेख के बाद मैं आपको गर्भावस्था और इस दौरान होने वाले शारीरक बदलाव, गर्भावस्था के दौरान की जाने वाली देखभाल तथा उसके बाद बच्चो की देखभाल कैसे की जाये, इन सब से जुड़े लेख ले कर आउंगी।

अपनी पूरी गर्भावस्था में अपना पूरा ख्याल रखें। समय समय पर खाते-पीते रहे पर हाँ दो दोनों का खाना ना खाएं जितनी भूख हो उतना ही खाये नहीं तो आपका वजन ज्यादा हो सकता है जो आपके लिए ठीक नहीं है। आज के ब्लॉग में बस इतना ही, पोस्ट पसंद आई हो तो इसे शेयर जरूर करें। आज के पोस्ट में मेरी Pregnency Journey आपको कैसी लगी अपने सुझाव मुझे कमेंट करके जरूर बताएं।

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