सबसे पहले तो आप सभी को होली की हार्दिक शुभकामनायें! होली का नाम सुनते ही कई तरह के रंग, गुलाल और पिचकारियों का ख्याल हमारे मन में आता है। पर क्या आप जानते हैं की साल 2023 में Holi कब है? हम होली क्यों मनाते है (Holi Kyu Manaya Jata Hai)? होली क्यों मनाई जाती है (Why we Celebrate Holi in Hindi), होलिका की कहानी क्या है? होली की कहानी क्या है? होली के दिन रंगों से क्यों खेलते हैं?
होली एक ऐसा त्यौहार है जिसे ‘रंगों का त्योहार’ के रूप में जाना जाता है और जिसमे बच्चे से लेकर बूढ़े व्यक्ति तक बड़े ही हर्षोउल्लास के साथ इस त्यौहार को मानते हैं। होली फाल्गुन (मार्च) माह में पड़ने वाली पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। भारत में कई अन्य त्योहारों की तरह होली को भी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। प्राचीन पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजा हिरण्यकश्यपु की एक पौराणिक कथा है, जिसके साथ होली जुड़ी हुई है।
होली हिन्दुओं के प्रमुख और प्रचलित त्योहारों में से एक है। हमारे देश में जितने भी त्यौहार मनाये जाते हैं उन सबके पीछे एक पौराणिक और सच्ची कथा छिपी हुई होती है। ठीक उसी तरह Holi में रंगों के साथ खेलने के पीछे भी बहुत सी कहानियाँ हैं। तो चलिए आज इस लेख में हम जानते हैं की होली फेस्टिवल क्यों मनाया जाता है और इसके पीछे कौन कौन सी कथाएं प्रचलित है।
होली क्या है और होली कब है । What is Holi in Hindi and when is Holi
होली “रंगों का त्यौहार” है। ये हर साल फाल्गुन यानि की मार्च के महीने में पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस त्यौहार को बच्चे से लेकर वृद्ध व्यक्ति तक बड़ी ही ख़ुशी, उमंग और हर्षोउल्लास के साथ मानते हैं। ऐसा माना जाता है की होली के बाद से सर्दी ख़तम हो जाती है और गर्मी की शुरुआत होती है। भारत के कुछ हिस्सों में इस त्यौहार को किसान अच्छी फसल पैदा होने की ख़ुशी में भी मनाते हैं।
होली का ये उत्सव फाल्गुन माह के अंतिम दिन होलिका दहन की शाम से शुरू होता है और अगले दिन सुबह सभी लोग एक दूसरे को रंग और गुलाल लगाते है। इस दौरान पूरी प्रकृति और वातावरण बेहद सुन्दर और रंगीन नज़र आती है। इस त्यौहार को एकता, प्यार, ख़ुशी के साथ मनाया जाता हुई। यह त्यौहार बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में जाना जाता है। कई लोग इस दिन नशीले खाध और पेय पदार्थ का सेवन करते हैं जो की बहुत ही गलत है।
अगर आप जानना चाहते हैं की होली कितनी तारीख को है, तो मैं बता दूँ की में होली 2023 बुधवार 8 मार्च को है। होली की तारीख भारतीय कैलेंडर के हिसाब से तय होती है और हर साल ये बदलती रहती है। आमतौर होली हर साल के मार्च के महीने में ही मनाया जाता है।
Holi Kyu Manaya Jata Hai | होली क्यों मनाई जाती है
अब जानते है की होली का त्यौहार क्यों मनाया जाता है? होली के इस त्यौहार से अनेको पौराणिक कहानियां जुडी हुई हैं जिनमे से सबसे प्रचलित कहानी प्रह्लाद और उनकी भक्ति की है। माना जाता है की प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप नाम का एक बलशाली अशुर हुआ करता था। हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था। हिरण्यकश्यप को ये बात बिलकुल पसंद नहीं थी। वो खुद को भगवान मानता था और अपनी पूरी प्रजा से खुद को भगवान भुलवाता था।
उसने प्रह्लाद को भी कहा की वो उसे ही अपना भगवान माने ना की विष्णु को। दरअसल हिरण्यकश्यप ने कठिन तपस्या द्वारा ब्रह्मा को प्रसन्न करके यह वरदान प्राप्त कर लिया कि उसे ना तो कोई इंसान मार सकता है और ना ही कोई जानवार, ना ही किसी अस्त्र या शस्त्र से, ना घर के बाहर ना अन्दर, ना ही दिन में और ना ही रात में, ना ही धरती में ना ही आकाश में।
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इस वरदान ने हिरण्यकश्यप को अहंकारी बना दिया था जिसके कारण वो खुद को अमर समझने लगा था। उसने इंद्रदेव का राज्य भी छीन लिया और तीनों लोकों को प्रताड़ित करने लगा। वह चाहता था कि सब लोग उसे ही भगवान मानें और उसकी पूजा करें। उसने अपने राज्य में विष्णु की पूजा को वर्जित कर दिया। प्रह्लाद एक अशुर का पुत्र होने के बावजूद और अपने पिता की यातना एवं प्रताड़ना के बावजूद विष्णु भगवान की पूजा करता रहा।
हिरण्यकश्यप को ये बात मंजूर नहीं थी। उसने काफी प्रयास किया की उसका पुत्र भगवान विष्णु की भक्ति छोड़ दे मगर वो हर बार अपने प्रयास में असफल होता रहा। इसी क्रोध में उसने अपने ही पुत्र की मृत्यु करने का फैसला लिया। हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से कहा कि वह अपनी गोद में प्रह्लाद को लेकर प्रज्ज्वलित अग्नि में बैठ जाये ताकि उसमे प्रह्लाद जलकर भस्म हो जाये।
होलिका को वरदान था कि वह अग्नि में नहीं जलेगी लेकिन जब होलिका ने प्रह्लाद को लेकर अग्नि में प्रवेश किया तो प्रह्लाद का बाल भी बाँका नहीं हुआ और होलिका उसी अहनि में जलकर राख हो गई। अगले दिन हिरण्यकश्यप ने एक बार फिर से प्रह्लाद को मारने के लिए लोहे के एक खंभे को गर्म कर लाल कर दिया तथा प्रह्लाद को उसे गले लगाने को कहा।
लेकिन तभी उसी खम्भे से भगवान विष्णु नरसिंह के रूप में प्रकट हुए तथा हिरण्यकश्यप को महल के प्रवेशद्वार की चौखट पर (जो न घर का बाहर था न भीतर), गोधूलि बेला में (जब न दिन था न रात), आधा मनुष्य- आधा पशु (जो न नर था न पशु), ऐसे नरसिंह के रूप में अपने लंबे तेज़ नाखूनों से (जो न अस्त्र थे न शस्त्र) हिरण्यकश्यप का पेट चीर कर उसे मार डाला। इस प्रकार हिरण्यकश्यप अनेक वरदानों के बावजूद अपने दुष्कर्मों के कारण भयानक अंत को प्राप्त हुआ।
जिस दिन होलिका अग्नि में जलकर भस्म हुई थी उस दिन को होलिका दहन के रूप में मनाया जाता है तथा अगले दिन जब हिरण्यकश्यप का वध हुआ था उस दिन वहां की प्रजा काफी खुश हुई क्यूंकि उनको अपने अत्याचारी राजा से छुटकारा मिल चूका था। इसी ख़ुशी में लोगों ने रंगों और अबीर-गुलाल से उस दिन का जश्न मनाया, तभी से यह त्यौहार हर वर्ष बुराई पर अच्छाई की जीत के तौर पर मनाया जाने लगा।
होली का यह त्यौहार वसंत ऋतु के आगमन और आने वाले पर्वों, और बुराई पर अच्छाई की जीत के लिए मनाया जाता है। हालांकि यह पारंपरिक रूप से हिंदुयों का त्योहार है।
2023 में होली कब है?
2023 में होली 8 मार्च को है, जो देशभर में 8 से 9 मार्च को मनाई जाएगी। 7 मार्च की शाम को होलिका दहन होगा। उसके बाद 8 और 9 तारीख को पूरे देश-दुनिया में होली का त्यौहार मनाया जाएगा।
होलिका दहन की कहानी (Holi Kyu Manaya Jata Hai)
जब हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद ने विष्णु भगवान की भक्ति करनी नहीं छोड़ी तो हिरण्यकश्यप ने तंग आकर उसे मारने का इरादा कर लिया। इसके लिए हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से सहायता मांगी। होलिका को भगवान शिव से एक चादर, वरदान के रूप में प्राप्त थी, जिसे ओढ़ने के बाद उसे अग्नि छू भी नहीं पाती। होलिका उस चादर को ओढ़कर प्रह्लाद को गोद में लेकर चिता पर बैठ गई।
इसके बाद दैवयोग से वह चादर उड़कर प्रह्लाद के ऊपर आ गई, जिससे प्रह्लाद की जान बच गई और होलिका उस अग्नि में जल गई। तब से लेकर अब तक हिन्दू धर्म के लोग इस दिन को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में देखते हैं और उस दिन को होलिका दहन के रूप में मानते हैं तथा अगले दिन को होली के उत्सव को मानाने के लिए लोग रंगों और अबीर-गुलाल का इस्तेमाल करत्ते हैं।
होली से ठीक एक दिन पहले होलिका दहन होता है जिसमे लकड़ी, घास और गाय का गोबर से बने ढेर को जलाया जाता था तथा लोग अपने अंदर की बुराई को नष्ट करने का वचन लेते हैं।
होली का महत्व (Significance of Holi)
होली का त्यौहार अपनी सांस्कृतिक और पारंपरिक मान्यताओं की वजह से बहुत प्राचीन समय से मनाया जा रहा है। बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक होली का सामाजिक महत्व भी है। इसका उल्लेख भारत की बहुत से पवित्र पौराणिक पुस्तकों,जैसे पुराण, दसकुमार चरित, संस्कृत नाटक, रत्नावली में किया गया है। यह एक ऐसा पर्व होता है जब लोग आपसी मतभेद भुलाकर एक हो जाते हैं।
मान्यता है कि इस दिन अगर किसी को लाल रंग का गुलाल लगाया जाए तो सभी तरह के मनभेद और मतभेद दूर हो जाते हैं। क्योंकि लाल रंग प्यार और सौहार्द का प्रतीक होता है। इसलिए यह आपसी प्रेम और स्नेह बढ़ाता है। वहीं धार्मिक महत्व की बात करें तो इस दिन होलिका में सभी तरह की नकारात्मक शक्तियों का नाश हो जाता है और सकारात्मकता की शुरुआत होती है।
होली के इस अनुष्ठान पर लोग सड़कों, पार्कों, सामुदायिक केंद्र, और मंदिरों के आस-पास के क्षेत्रों में होलिका दहन की रस्म के लिए लकड़ी और अन्य ज्वलनशील सामग्री के ढेर बनाने शुरू कर देते है। बहुत से लोग घर पर साफ- सफाई भी करते हैं। इसके साथ अलग अलग प्रकार के व्यंजन भी बनाते हैं जैसे की गुझिया, मिठाई, मठ्ठी, मालपुआ, चिप्स आदि।
प्राचीन भारतीय पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस त्यौहार का जश्न मनाने के पीछे कई किंवदंतियों रही हैं। होली हिंदुओं के लिए एक सांस्कृतिक, धार्मिक और पारंपरिक त्यौहार है। होली शब्द “होलिका” से उत्पन्न है। होली का त्यौहार विशेष रूप से भारत (आर्याव्रत) के लोगों द्वारा मनाया जाता है जिसके पीछे बड़ा कारण है। एक बड़ा कारण यह है की यह त्यौहार केवल रंगों का नहीं बल्कि भाईचारे का भी है।
जैसे हम त्यौहार के दोरान सभी रंगों का इस्तमाल करते हैं ठीक वैसे ही हमें आपस में भाईचारे की भावना से रहना चाहिए और एक दुसरे के साथ मिलजुलकर सभी त्यौहारओं को मानना चाहिए। होली एक ऐसा त्यौहार है जिसे देश का हर प्रान्त बड़ी धूमधाम से मनाता है। अलग अलग प्रान्तों में उनके संस्कृति के अनुसार इसे रीती निति से मनाया जाता है। यह त्यौहार हमें सबके साथ मिलझूलकर रहने की प्रेरणा देता है।
रंग होली का हिस्सा कैसे बने?
ऐसा माना जाता है कि भगवान कृष्ण रंगों के साथ होली मनाते थे और इसलिए वे लोकप्रिय थे। वह वृंदावन और गोकुल में अपने दोस्तों के साथ रंगों से होली खेलते थे। यही वजह है कि आज तक वृंदावन में होली का उत्सव बेजोड़ तरीके से मनाया जाता है। होली एक वसंत ऋतू में मनाया जाने वाला त्योहार है जो सर्दियों को अलविदा कहता है। कुछ हिस्सों में यह त्यौहार वसंत फसल के साथ भी जुड़े हुए हैं।
नई फसल से भरे हुए अपने भंडार को देखने के बाद किसान होली को अपनी खुशी के एक हिस्से के रूप में मनाते हैं। इस वजह से, होली को ‘वसंत महोत्सव’ और ‘काम महोत्सव’ के रूप में भी जाना जाता है। होली एक प्राचीन त्योहार है यह सबसे पुराने हिंदू त्योहारों में से एक है और यह संभवत: ईसा के जन्म से कई शताब्दियों पहले शुरू हुआ था।
इसके आधार पर, होली का उल्लेख प्राचीन धार्मिक पुस्तकों में मिलता है, जैसे कि जैमिनी का पुरवामीमांसा-सूत्र और कथक-ग्राम-सूत्र। यहां तक कि प्राचीन भारत के मंदिरों की दीवारों पर होली की मूर्तियां हैं। इनमें से एक विजयनगर की राजधानी हम्पी में 16 वीं शताब्दी का एक मंदिर है। मंदिर में होली के कई दृश्य हैं जिनकी दीवारों पर राजकुमारों और राजकुमारियों को दिखाया गया है और उनके नौकरानियों के साथ राजमिस्त्री भी हैं, जो राजमहल में पानी के लिए चिचड़ी रखते हैं।
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Holi को सही तरीके से कैसे मनाएं (Holi Kyu Manaya Jata Hai)
एक वक्त था जब होली के रंगों को ’टेसू’ या ’पलाश’ के पेड़ से बनाया जाता था और गुलाल के रूप में जाना जाता था। वो रंग त्वचा के लिए बहुत अच्छे हुआ करते थे क्योंकि इन्हें बनाने के लिए किसी रसायन का इस्तेमाल नहीं किया जाता था। लेकिन त्योहारों की सभी परिभाषाएं समय के साथ बदल गयी हैं और साथ में रंगों की परिभाषा बदल गई है।
आजकल लोग दुकानों पर रसायनों से बने कठोर रंगों का उपयोग करने लगे हैं। होली खेलने के लिए भी तेज रंगों का उपयोग किया जाता है, जो त्वचा के लिए काफी खतरनाक होते हैं। यही कारण है कि बहुत से लोग इस त्योहार को मनाने से बचते हैं। हमें इस पुराने त्योहार का आनंद उत्सव की सच्ची भावना के साथ लेना चाहिए। इसके लिए आप नेचुरल तरीके से बने रंगों का इस्तेमाल करें जो हर तरह से सुरक्षित होते हैं।
होली के दिन आप जो भी कपड़े पहने उससे आपका पूरा शरीर ढका होना चाहिये ताकि जब कोई दूसरा व्यक्ति आपको chemicals से बने रंग लगाये तो आपकी त्वचा कपड़ो की वजह से बच जाए। होली खेले से पहले आप अपने चेहरे, शरीर और बाल पर कोई भी तेल लगा लें इससे होली खेलने के बाद जब आप नहाने जाएंगे और रंगों को छुड़ाने की कोशिश करेंगे तो वो आसानी से छूट जायेंगे।
होली खेलने के लिए आप Chemical से बने रंग या synthetic रंग का इस्तेमाल बिलकुल भी ना करें। रंगों को किसी भी व्यक्ति के आँख, नाक, मुह और कान में ना डालें। होली के दिन को अपने परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर मनाएं और अजनबियों से दूर ही रहे। अगर कोई रंगों के साथ खेलना नहीं चाहता तो उसे जबरदस्ती रंग ना लगाएं।
होली के रंगों को अपने शरीर से कैसे मिटायें
आपने सुना ही होगा “precaution is better than cure” कहने का मतलब है की रंगों को छुड़ाने की चिंता करने से बेहतर है की आप रंग खेलने से पहले ही खुद को तैयार कर लें। इसके लिए आप अपने पुरे शरीर और बालों पर नारियल या कोई अन्य तेल लगा लें। इससे कोई भी रंग हमारे शरीर और बालों पर चिपकेगा नहीं और नहाते समय आसानी से निकल जाएगा।
जितना हो सके organic colors जैसे की food dye का इस्तेमाल करें क्यूंकि chemicals वाले रंग हमारे त्वचा को नुकसान पहुंचा सकते हैं। ज्यादा सूखे रंग का इस्तमाल करें जिससे की उन्हें आसानी से झाडा जा सकता है।
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आशा है आपको मेरा ये लेख Holi Kyu Manaya Jata Hai | होली क्यों मनाई जाती है आपको पसंद आया होगा। आज के लेख में हमने 2023 में होली कब है, होली का महत्व और Holi Kyu Manaya Jata Hai, Holi को सही तरीके से कैसे मनाएं, होली का महत्व इत्यादि के बारे में जाना।
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होली का त्यौहार कब और क्यों मनाया जाता है?
होली को 'रंगों का त्योहार' के रूप में जाना जाता है। होली का त्योहार हिंदू कैलेंडर के अनुसार फाल्गुन माह के अंतिम पूर्णिमा के दिन होता है। यह दो दिवसीय कार्यक्रम है: पहले दिन, होलिका दहन किया जाता है और दूसरे दिन रंगों का त्योहार मनाया जाता है। होली मनाने के लिए तेज संगीत, ड्रम आदि के बीच विभिन्न रंगों और पानी को एक दूसरे पर फेंका जाता है। भारत में कई अन्य त्योहारों की तरह, होली भी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
होली का त्योहार कैसे मनाया जाता है?
होली के दिन लोग एक दूसरे को अबीर-गुलाल और रंग लगाते हैं। यह बहुत ही हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाने वाला त्यौहार है। इसमें लोग आपसी मतभेद को भूलकर एक दूसरे को रंग लगाते हैं। कई बच्चे और बड़े रंगों के बैग और पानी के गुब्बारे, रंगीन पानी से भरे पूल, और पानी के झोंके या पिचकारी के साथ रंगों इस इस त्यौहार को मनाते हैं।
होली मनाने के पीछे क्या कहानी है?
होली मनाने के पीछे जो प्रचलित कथा है वो प्रह्लाद और हिरण्यकश्यप की है। होली के एक दिन पहले होलिका जलाई जाती है यह दिन हिरण्यकश्यप होलिका के मारे जाने के उपलक्ष में मनाया जाता है और होली के दिन हिरण्यकश्यप का वध भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार द्वारा हुआ था। इस ख़ुशी में वहां की प्रजा ने रंगों और गुलाल से उस दिन को मनाया था। तभी से होलिका और होली के इस पावन त्यहार को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है।
होली की शुरुआत क्यों हुई?
हिरण्यकश्यप के मरने से पहले ही होलिका के रूप में बुराई जल गई और अच्छाई के रूप में भक्त प्रहलाद बच गए। उसी दिन से होली को जलाने और भक्त प्रहलाद के बचने की खुशी में अगले दिन रंग गुलाल लगाए जाने की शुरुआत हो गई।
होली की असली कहानी क्या है?
प्रह्लाद को जलाने के प्रयास में हिरण्यकश्यप की बहन होलिका उसके साथ एक चिता पर बैठ गई। चिता पर जाने से पहले होलिका ने भवन शंकर से प्राप्त चादर ओढ़ ली। उस चादर को ओढ़ने के बाद अग्नि उसे छू भी नहीं पाती। लेकिन जब होलिका उस चादर को ओढ़ कर अग्नि में बैठी तो वो चादर उड़ कर प्रह्लाद के ऊपर चली गई और होलिका जल गयी। अगले दिन भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार के द्वारा हिरण्यकश्यप का वध हुआ। इस प्रकरण को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में घोषित किया गया।
कृष्ण का होली से क्या संबंध है?
कृष्ण की जन्मस्थली मथुरा के आसपास के गांवों में होली बहुत ही धूमधाम से मनाई जाती है। होली को भगवान कृष्ण द्वारा अपनी भक्त गोपियों के लाभ के लिए रासलीला के रूप में जाने जाने वाले दिव्य नृत्य से भी जोड़ा जाता है ।
होली पर किसकी मृत्यु हुई?
होली पर हिरण्यकश्यप की बहन होलिका और बाद में भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार द्वारा हिरण्यकश्यप की मृत्यु हुई थी। इसलिए होली का त्योहार, होलिका की मौत की कहानी से जुड़ा हुआ है। इसके चलते भारत के कुछ राज्यों में होली से एक दिन पहले बुराई के अंत के प्रतीक के तौर पर होलिका का पुतला चौराहों पर रखा जाता है और उस जलाया जाता है।
होलिका का दूसरा नाम क्या था?
होलिका का दूसरा नाम हरदोई या हरिद्रोही था। होलिका को हरि का द्रोही भी कहा जाता था, इसलिए उन्होंने इसका नाम हरिद्रोही रखा गया था।
होली कौन से महीने में पड़ती है?
होली हिंदू पंचांग के अनुसार होली फाल्गुन माह के अंतिम पूर्णिमा के दिन पड़ती है।
होली का अर्थ क्या है?
होली शब्द का अर्थ होता है पवित्रता। मानव के जीवन में हमेशा से पवित्रता को सबसे ज़्यादा महत्व देना चाहिए।