क्या आप जानते हैं की Chhath Puja Kyun Manaya Jata Hai? छठ पूजा क्या होती है और इसे कौन करते हैं? छठ क्यों मनाया जाता है (chhath puja kyu manaya jata hai kahani), छठ पूजा कैसे मनाया जाता है, छठ पूजा की कहानी क्या है और ज्यादातर बिहार में छठ पूजा क्यों मनाया जाता है? बिहार के साथ साथ उत्तर प्रदेश में भी छठ पूजा का यह त्यौहार मनाया जाने लगा है।
दीपावली के छठे दिन मनाये जाने वाले इस छठ पर्व को बहुत श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस पर्व की बहुत मान्यता है इसलिए बहुत से लोग इसे करते हैं पर बहुत कम लोगों को पता है की Chhath Puja Kyun Manaya Jata Hai और इसका इतहास क्या है। अगर आप भी उनमे से एक हैं और जानना चाहते हैं की आखिर क्यों क्यों मनाया जाता है Chhath Puja और क्या है इसका इतिहास, पर्व छठ का वैज्ञानिक व आध्यात्मिक महत्व क्या है, तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें।
छठ पर्व, छठ पूजा या षष्ठी पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को मनाया जाने वाला एक बहुत बड़ा महापर्व है जिसे चार दिनों तक लगातार मनाया जाता है। सूर्योपासना का यह अनुपम लोकपर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है। कहा जाता है यह पर्व बिहार के लोगों का सबसे बड़ा पर्व है, ये उनकी संस्कृति है।
छठ पर्व को छठ पूजा, छठ, डाला छठ, छठी माई, छठ माई, षष्ठी सूर्य उपासना एवं षष्ठी पर्व के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार छठी माता भगवान सूर्य की बहन हैं। छठ पर्व बिहार मे बड़े धुम धाम से मनाया जाता है। ये एक मात्र ही बिहार या पूरे भारत का ऐसा पर्व है जो वैदिक काल से चला आ रहा है और ये बिहार कि संस्कृति बन चुका हैं।
बिहार मे हिन्दुओं द्वारा मनाया जाने वाला यह पर्व धीरे-धीरे भारतीयों के साथ-साथ विश्वभर में प्रचलित हो गया है। छठ पूजा सूर्य, उषा, प्रकृति,जल, वायु और उनकी बहन छठी मइया को समर्पित है। छठ पूजा में कोई मूर्तिपूजा शामिल नहीं है। चलिए इस लेख में आगे जानते हैं की Chhath Puja क्यों मनाया जाता है?छठ पूजा क्यों मनाई जाती है या छठ पूजा क्यों मनाते है।
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Chhath Puja Kyun Manaya Jata Hai?
छठ पूजा क्या है?
छठ पर्व, छठ पूजा या षष्ठी पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को मनाया जाने वाला एक बहुत बड़ा महापर्व है जिसे चार दिनों तक लगातार मनाया जाता है। छठ पर्व को छठ पूजा, छठ, डाला छठ, छठी माई, छठ माई, षष्ठी सूर्य उपासना एवं षष्ठी पर्व के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार छठी माता भगवान सूर्य की बहन हैं।
छठ पर्व बिहार मे बड़े धुम धाम से मनाया जाता है। ये एक मात्र ही बिहार या पूरे भारत का ऐसा पर्व है जो वैदिक काल से चला आ रहा है और ये बिहार कि संस्कृति बन चुका हैं। छठ पूजा पर्व का उल्लेख रामायण एवं महाभारत में भी मिलता है अर्थात यह पर्व रामायण काल एवं महाभारत काल से चला आ रहा है।
छठ पूजा में मुख्य रूप से सूर्य की उपासना की जाती है। लेकिन बाकी हिन्दू पर्वों की तरह इसमें मूर्ति पूजा शामिल नहीं है। बिहार में हिन्दू धर्मावलंबियों के अलावा इस्लाम एवं अन्य धर्म के लोग भी इस पर्व को मनाते हैं। इस पर्व के पीछे कुछ पौराणिक मान्यताएं हैं और इससे जुड़ी बहुत सी कथाएं भी प्रचिलित हैं।
इस त्यौहार के अनुष्ठान कठोर हैं और चार दिनों की अवधि में मनाए जाते हैं। इनमें पवित्र स्नान, उपवास और पीने के पानी (वृत्ता) से दूर रहना, लंबे समय तक पानी में खड़ा होना, और प्रसाद (प्रार्थना प्रसाद) और अर्घ्य देना शामिल है। परवातिन नामक मुख्य उपासक (संस्कृत पार्व से, जिसका मतलब ‘अवसर’ या ‘त्यौहार’) आमतौर पर महिलाएं होती हैं। हालांकि, बड़ी संख्या में पुरुष भी इस उत्सव का पालन करते हैं क्योंकि छठ लिंग-विशिष्ट त्यौहार नहीं है। छठ महापर्व के व्रत को स्त्री – पुरुष, बुढ़े – जवान सभी लोग करते हैं।
नाम | छठ पूजा |
अन्य नाम | छठ पर्व, डाला छठ, डाला पूजा, सूर्य षष्ठी, छठी माई, छठ माई, छैथ |
आरम्भ | महाभारत काल से |
कौन करते है | मगही, मैथिली, भोजपुरी, अवधी, सदन, थारू और मधेशी हिंदू |
पालन | सूर्य, सूर्य देवता और छठी मैया की पूजा करने के लिए लोग नदी या तालाब पर एकत्र होते है |
दिनांक | कार्तिक शुक्ल षष्ठी |
तारीख | 17-20 नवंबर |
2023 में छठ पूजा कब है? Chhath Puja 2023 date
2023 में छठ पूजा 19-20 नवंबर को है।
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छठ पूजा का इतिहास
छठ केवल एक पर्व ही नहीं है बल्कि महापर्व है जो कुल चार दिन तक चलता है। नहाय-खाय से लेकर उगते हुए भगवान सूर्य को अर्घ्य देने तक चलने वाले इस पर्व का अपना एक ऐतिहासिक महत्व है। ये पर्व साल में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में। चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले छठ पर्व को ‘चैती छठ’ और कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले पर्व को ‘कार्तिकी छठ’ कहा जाता है। पारिवारिक सुख-समृद्धि और मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए ये पर्व मनाया जाता है।
छठ पर्व कैसे शुरू हुआ इसके पीछे कई ऐतिहासिक कहानियां प्रचलित हैं। पुराण में छठ पूजा के पीछे की कहानी राजा प्रियंवद को लेकर है। कहते हैं राजा प्रियंवद को कोई संतान नहीं थी तब महर्षि कश्यप ने पुत्र की प्राप्ति के लिए यज्ञ कराकर प्रियंवद की पत्नी मालिनी को आहुति के लिए बनाई गई खीर दी। इससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई लेकिन वो पुत्र मरा हुआ पैदा हुआ।
प्रियंवद पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे, तभी आसमान से एक ज्योतिर्मय विमान धरती पर उतरा जिसमे भगवान की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं और उन्होंने राजा से कहा कि मैं षष्ठी देवी हूँ और विश्व के समस्त बालकों की रक्षिका हूं। इतना कहकर देवी ने शिशु के मृत शरीर को स्पर्श किया, जिससे वह जीवित हो उठा।
देवी ने राजा से कहा तुम मेरी पूजा करो और दूसरों को भी मेरी पूजा के लिए प्रेरित करो जिससे सभी मानव जान के बच्चों का काम्यं होगा। क्योंकि वो देवी सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हैं, इसी कारण वो षष्ठी कहलातीं हैं। राजा प्रियंवद ने देवी के कथनानुसार ही कार्य किया और इसके बाद से ही अपने राज्य में यह त्योहार मनाने की घोषणा कर दी। कहते हैं ये पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी और तभी से छठ पूजा होती है।
इस कथा के अलावा एक कथा राम-सीता जी से भी जुड़ी हुई है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक जब राम-सीता 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे तो रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूर्य यज्ञ करने का फैसला लिया। पूजा के लिए उन्होंने मुग्दल ऋषि को आमंत्रित किया। मुग्दल ऋषि ने मां सीता पर गंगा जल छिड़क कर पवित्र किया और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया। जिसे सीता जी ने मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी।
एक मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। इसकी शुरुआत सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा करके की थी। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और वो रोज घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है। छठ पर्व के बारे में एक कथा और भी है।
इस कथा के मुताबिक जब पांडव अपना सारा राजपाठ जुए में हार गए तब दौपदी ने छठ व्रत रखा था। इस व्रत से उनकी मनोकामना पूरी हुई थी और पांडवों को अपना राजपाठ वापस मिल गया था। लोक परंपरा के मुताबिक सूर्य देव और छठी मईया का संबंध भाई-बहन का है। इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की आराधना फलदायी मानी जाती है।
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छठ पूजा कब मनाया जाता है?
छठ पूजा का पर्व साल में दो बार आता है। हिंदी कैलेंडर के अनुसार छठ पूजा का पर्व कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है और दूसरा चैत्र माह की षष्ठी तिथि को आता है, लेकिन मुख्य रूप से कार्तिक मास की छठ पूजा का पर्व ही मनाया जाता है। छठ पूजा का पर्व हर वर्ष मनाया जाने वाला पर्व है।
छठ पूजा का पर्व इस दिन मनाने के पीछे बहुत सी पौराणिक मान्यताएं हैं और इस दिन से जुड़ी हुई बहुत सी कथाएं भी प्रचिलित हैं। छठ पूजा पर्व के अनुष्ठान बहुत कठोर माने जाते हैं। इसमें निर्जल व्रत से लेकर पानी में खड़े होकर सूर्य अर्घ्य देना आदि कार्य शामिल हैं जो कि इस पर्व में उपासक को करना होता है। पर्यावरणविदों के अनुसार भी छठ पूजा के पर्व को प्रकृति के अनुकूल माना गया है। सूर्योपासना का वैज्ञानिक व आध्यात्मिक महत्व भी है।
छठ पूजा क्यों मनाते है?
(Chhath Puja क्यों मनाया जाता है?)
छठ पूजा का पर्व मुख्य रूप से बच्चे की इक्छा और बच्चों के कुशल मंगल की कामना करने वाले लोग करते हैं। इसके साथ घर परिवार के सभी सदस्यों की सुरक्षा एवं स्वास्थ्य लाभ, सुख समृद्धि के लिए भी इस पर्व को किया जाता है। इस दिन प्राकृतिक सौंदर्य एवं परिवार के कल्याण के लिए पूजा की जाती है। माना जाता है कि छठ पूजा करने से परिवार में सुख समृद्धि बानी रहती है एवं मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
यह व्रत आमतौर पर महिलाएं करती हैं लेकिन बड़ी संख्या में पुरुष भी इस उत्सव का पालन करते हैं क्योंकि छठ पर्व लिंग-विशिष्ट त्यौहार नहीं है। छठ महापर्व के व्रत को स्त्री – पुरुष, बुढ़े – जवान सभी लोग करते हैं। पुरुष अपने मनवांछित फल प्राप्ति के लिये इस कठोर व्रत को रखते हैं। रोगी या फिर रोगी के परिवारजन रोग से मुक्ति पाने के पाने के लिए भी छठ पूजा करते हैं।
सूर्योपासना यानि छठ पूजा का वैज्ञानिक व आध्यात्मिक महत्व | छठ पूजा का महत्व (Chhath pooja importance)
सूर्योपासना का पर्व छठ भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में मनाया जाने लगा है। मूलत: सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा गया है। यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक मास में। चैत्र शुक्लपक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ व कार्तिक शुक्लपक्ष षष्ठी पर मनाए जानेवाले पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता है। पारिवारिक सुख-स्मृद्धि तथा मनोवांछित फलप्राप्ति के लिए यह पर्व मनाया जाता है। इस पर्व को स्त्री और पुरुष समानरूप से मनाते हैं।
छठ पर्व की परंपरा में बहुत ही गहरा विज्ञान छिपा हुआ है षष्ठी तिथि (छठ) एक विशेष खगोलीय अवसर है। उस समय सूर्य की पराबैगनी किरणें (ultra violet rays) पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती हैं। उसके संभावित कुप्रभावों से मानव की यथासंभव रक्षा करने का सामर्थ्य इस परंपरा में है। पर्व पालन से सूर्य (तारा) प्रकाश (पराबैगनी किरण) के हानिकारक प्रभाव से जीवों की रक्षा संभव है। पृथ्वी के जीवों को इससे बहुत लाभ मिल सकता है।
पराबैंगनी किरणों का पृथ्वी व मानव पर पड़ता असर सूर्य के प्रकाश के साथ उसकी पराबैगनी किरण भी चंद्रमा और पृथ्वी पर आती हैं। सूर्य का प्रकाश जब पृथ्वी पर पहुंचता है, तो पहले उसे वायुमंडल मिलता है। वायुमंडल में प्रवेश करने पर उसे आयन मंडल मिलता है। पराबैंगनी किरणों का उपयोग कर वायुमंडल अपने ऑक्सीजन तत्व को संश्लेषित कर उसे उसके एलोट्रोप ओजोन में बदल देता है।
इस क्रिया द्वारा सूर्य की पराबैंगनी किरणों का अधिकांश भाग पृथ्वी के वायुमंडल में ही अवशोषित हो जाता है। पृथ्वी की सतह पर केवल उसका नगण्य भाग ही पहुंच पाता है। सामान्य अवस्था में पृथ्वी की सतह पर पहुंचने वाली पराबैंगनी किरण की मात्रा मनुष्यों या जीवों के सहन करने की सीमा में होती है।
अत: सामान्य अवस्था में मनुष्यों पर उसका कोई विशेष हानिकारक प्रभाव नहीं पडता, बल्कि उस धूप द्वारा हानिकारक कीटाणु मर जाते हैं, जिससे मनुष्य या जीवन को लाभ ही होता है। छठ जैसी खगोलीय स्थिति (चंद्रमा और पृथ्वी के भ्रमण तलों की सम रेखा के दोनों छोर पर) सूर्य की पराबैंगनी किरणें कुछ चंद्र सतह से परावर्तित तथा कुछ गोलीय अपवर्तित होती हुई पृथ्वी पर पुन: सामान्य से अधिक मात्रा में पहुंच जाती हैं।
वायुमंडल के स्तरों से आवर्तित होती हुई सूर्यास्त तथा सूर्योदय को यह और भी सघन हो जाती है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार यह घटना कार्तिक तथा चैत्र मास की अमावस्या के छ: दिन उपरांत आती है। ज्योतिषीय गणना पर आधारित होने के कारण इसका नाम छठ पर्व ही रखा गया है।
छठ पर्व किस प्रकार मनाते हैं |छठ पूजा की विधि | छठ पूजा कैसे मनाया जाता है?
chhath puja ke niyam aur vidhi : यह पर्व चार दिनों का है। भैयादूज के तीसरे दिन से यह आरंभ होता है और इसकी शुरुआत कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से माना जाता है। पहले दिन सेंधा नमक, घी से बना हुआ अरवा चावल और कद्दू की सब्जी प्रसाद के रूप में ली जाती है। अगले दिन से उपवास आरंभ होता है।
इस दिन रात में गुड़ की खीर बनती है। इस दिन को खरना के नाम से जाना जाता है। व्रतधारी को रात में यह प्रसाद एकांत में ग्रहण करना होता है उसके बाद इसे घर के सभी सदस्यों को प्रसाद के तौर पर वितरित किया जाता है। षष्टी तिथि के दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य (दूध अर्पण) दिया जाता है और अंतिम दिन सप्तमी को उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा है।
इस पूजा में पवित्रता का ध्यान रखा जाता है। लहसुन, प्याज़, गन्दी जगह सब वर्जित होते हैं। जिन घरों में यह पूजा होती है, वहां भक्ति गीत गाए जाते हैं। आजकल कुछ नई रीतियां भी आरंभ हो गई हैं, जैसे पंडाल और सूर्यदेवता की मूर्ति की स्थापना की जाने लगी है।
सुबह अर्घ्य के उपरांत आयोजनकर्ता माइक पर चिल्लाकर प्रसाद मांगते हैं। पटाखे भी जलाए जाते हैं। कहीं-कहीं तो आर्केस्ट्रा का भी आयोजन होता है; परंतु साथ ही साथ दूध, फल, अगरबत्ती भी बांटी जाती है। पूजा की तैयारी के लिए लोग मिलकर पूरे रास्ते की सफाई करते हैं।
छठ व्रत में बिना अन्न जल ग्रहण करे रहना, कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देना, एकांत में प्रसाद ग्रहण करना, साफ सफाई का विशेष ध्यान रखना आदि कठोर नियम शामिल है।
इस दिन सूर्य की दोनों पत्नियां उषा अर्थात सूर्योदय एवं प्रत्युषा अर्थात सूर्यास्त की पूजा भी की जाती है। बिहार में षष्ठी माता के लोकगीत बहुत प्रचिलित हैं। छठ पूजा की शुरुआत होती घरों एवं मंदिरों से छठ माता के लोकगीतों की गूंज सुनाई पड़ने लगती है। छठ पूजा बिहार की परम्परा बन चुकी है।
छठ पूजा में किन किन चीजों की जरुरत पड़ती है?
छठ पूजा में सबसे लोकप्रिय प्रसाद है ठेकुआ, खस्ता, खाजा, गुझिया, गन्ना, गागल (बड़ा निम्बू), नारियल, कई तरह के फल, चंदन, चावल, सिंदूर, धूपबत्ती, कुमकुम, कपूर, शहद, हल्दी, मूली,अदरक का हरा पौधा, इत्यादि चीजों की जरुरत पड़ती है।
छठ पूजा कहां मनाया जाता है?
छठ पूजा भारतवर्ष में मुख्य रूप से बिहार और उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है। लेकिन आजकल ये पुरे विश्व भर में प्रचलित है।
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