Ganesh Chaturthi Kyu Manaya Jata Hai | गणेश चतुर्थी की पौराणिक कथा

गणेश चतुर्थी क्‍यों मनाते हैं (Ganesh Chaturthi Kyu Manaya Jata Hai), इसके पीछे भी है पौराणिक कथा। हर साल पुरे दस दिन तक हम सब गणेश चतुर्थी का त्यौहार मनाते हैं। लेकिन कितनों को पता है की गणेश चतुर्थी की कहानी क्या है और इसे क्यूँ मनाया जाता है? गणेश चतुर्थी क्या है? गणेश चतुर्थी क्यों मनाया जाता है और गणेश चतुर्थी की पौराणिक कथा क्या है? इन सब के बारे में जानने के लिए इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें। 

गणेश चतुर्थी भाद्रपद मास के शुक्‍ल पक्ष की चतुर्थी को देश भर में धूमधाम से मनाया जाता है। मान्‍यता है कि इस दिन भगवान गणेशजी का जन्‍म हुआ था, इस उपलक्ष्‍य में पूरे देश में धूमधाम से गणेश चतुर्थी का उत्‍सव मनाया जाता है। गणेश चतुर्थी क्‍यों मनाते हैं इसके पीछे कई पौराणिक कथाएं भी हैं। उनमें से एक कथा के बारे में आज मैं आपको बताने वाली हूँ।

गणेश चतुर्थी का त्यौहार, भारत में मनाये जाने वाले त्योहारों में से एक है। वैसे तो गणेश जी की पूजा को ही गणेश चतुर्थी कहा जाता है लेकिन आप में से ऐसे बहुत से लोग है जिन्हें की ये नहीं पता की क्यों गणेश चतुर्थी मनाया जाता है? गणेश जी भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र हैं। वैसे तो गणेश चतुर्थी भारत के कई राज्यों में मनाया जाता है, लेकिन महाराष्ट्र के लोगो को इस त्यौहार का बेसब्री से इंतज़ार होता है क्यूंकि महाराष्ट्र के लोग इसे बहुत ही धूम धाम से मनाते हैं।

भारत में लोग कोई भी नया काम शुरू करने से पहले भगवान गणेश की पूजा करते है क्यूंकि भगवान गणेश ज्ञान, समृद्धि और सौभाग्य के प्रतीक हैं। भगवान गणपति को उनके सभी भक्तों के लिए सौभाग्य के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। दुनिया भर के हिंदू, किसी भी नए महत्वपूर्ण उद्यम जैसे यात्रा, शादियों आदि की शुरुआत करने से पहले भगवान गणपति की पूजा करते हैं। भगवान गणेश को सुखकर्ता दुखहर्ता, विनायक और विघ्नहर्ता के नाम से भी बुलाया जाता है।

विघ्नहर्ता का अर्थ है बाधाओं का अंत करने वाला, इसलिए भगवान गणेश की पूजा सबसे पहले की जाती है ताकि वे उन सभी अप्रत्याशित बाधाओं को नष्ट कर सकें जो कार्य करते समय आ सकती हैं। गणेश जी को ऋद्धि-सिद्धि व बुद्धि का दाता भी माना जाता है। इसलिए मैंने सोचा की क्यूँ न आप लोगों की गणेश चतुर्थी क्या है इसे क्यों मनाया जाता है के विषय में पूरी जानकारी साझा की जाये। इसलिए मैं आज का यह लेख ले कर आई हूँ।

 

Ganesh Chaturthi Kyu Manaya Jata Hai | गणेश चतुर्थी की पौराणिक कथा

गणेश चतुर्थी क्या है? | why is ganesh chaturthi celebrated

गणेश चतुर्थी, भारत में मनाये जाने वाले त्योहारों में से एक है। गणेश चतुर्थी को विनायक चतुर्थी भी कहा जाता है। यह मूल रूप से महाराष्ट्र में मनाया जाने वाला त्योहार है। वहाँ की गणेश चतुर्थी देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। इस त्योहार के दौरान लोग भगवान गणेश की भक्ति करते हैं। गणेश चतुर्थी की शुरुआत वैदिक भजनों, प्रार्थनाओं और हिंदू ग्रंथों जैसे गणेश उपनिषद से होती है। प्रार्थना के बाद गणेश जी को मोदक का भोग लगाकर, मोदक को लोगो में प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।
इन दिनों लोग भंडारे भी करवाते हैं और बहुत अच्छे से साज-सजावट भी होती है। इस त्योहार में पूरा माहौल भक्तिमय हो जाता है। गणेश चतुर्थी के दौरान सुबह और शाम गणेश जी की आरती की जाती है और लड्डू और मोदक का प्रसाद चढ़ाया जाता है। यह त्यौहार 10 दिन तक मनाया जाता है। इसके पीछे भी एक रोचक कहानी है।

कहा जाता है कि पौराणिक काल में एक बार महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की रचना के लिए गणेशजी का आह्नान किया और उनसे महाभारत को लिपिबद्ध करने की प्रार्थना की। गणेश जी ने कहा कि मैं जब लिखना प्रारंभ करूंगा तो कलम को रोकूंगा नहीं, यदि कलम रुक गई तो मैं लिखना बंद कर दूंगा। तब व्यास जी ने कहा प्रभु आप विद्वानों में अग्रणी हैं और मैं एक साधारण ऋषि। मुझसे किसी श्लोक में त्रुटि हो सकती है, अतः अगर मुझसे इसमे त्रुटि हो जाये तो आप त्रुटि का निवारण करके ही श्लोक को लिपिबद्ध कीजिये। आज के दिन से ही व्यास जी ने श्लोक बोलना और गणेशजी ने महाभारत को लिपिबद्ध करना प्रारंभ किया था।

उसके 10 दिन के पश्‍चात अनंत चतुर्दशी को लेखन कार्य समाप्त हुआ। इन 10 दिनों में गणेशजी एक ही आसन पर बैठकर महाभारत को लिपिबद्ध करते रहे, इस कारण 10 दिनों में उनका शरीर जड़वत हो गया और शरीर पर धूल, मिट्टी की परत जमा हो गई, तब 10 दिन बाद गणेशजी ने सरस्वती नदी में स्नान कर अपने शरीर पर जमीं धूल और मिट्टी को साफ किया। जिस दिन गणेशजी ने लिखना आरंभ किया उस दिन भाद्रमास के शुक्‍ल पक्ष की तृतीया तिथि थी।

इसी उपलक्ष्‍य में हर साल इसी तिथि को गणेशजी को स्थापित किया जाता है और दस दिन मन, वचन कर्म और भक्ति भाव से उनकी उपासना करके अनन्त चतुर्दशी पर विसर्जित कर दिया जाता है।
इसका आध्यात्मिक महत्व है कि हम दस दिन संयम से जीवन व्यतीत करें और दस दिन पश्चात अपने मन और आत्मा पर जमी हुई वासनाओं की धूल और मिट्टी को प्रतिमा के साथ ही विसर्जित कर एक परिष्कृत और निर्मल मन और आत्मा के रूप को प्राप्त करें।

 

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गणेश चतुर्थी क्यों मनाते हैं? 

भारत के लोगों का मानना है कि भगवान गणेश रिद्धि-सिद्धि के डाटा, सुखकर्ता, दुखहर्ता और विघ्नहर्ता हैं। भगवन गणेश हमारे जीवन में खुशी और समृद्धि लाते हैं और जीवन में आने वाली सभी बाधाओं को दूर करते हैं। तो गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए लोग उनके जन्म दिवस को गणेश चतुर्थी के रूप में मानते है।
हिंदू धर्म में गणेश जी की पूजा करना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि जो लोग पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ उनकी पूजा करते हैं, उन्हें खुशी, ज्ञान, धन और लंबी आयु प्राप्त होगी और उनकी सभी मनोकामना पूरी होती है।

 

 

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गणेश चतुर्थी का महत्व (Significance of Ganesh Chaturthi)

गणेश चतुर्थी, भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से शुरू होती है और दस दिन तक इस उत्‍सव को मनाया जाता है। गणपति उत्‍सव चतुर्दशी को समाप्त होता है। गणपत‍ि के शरीर के विभिन्न अंगों का अलग महत्व है माना गया है। इसमें सिर को आत्मान, शरीर को माया, हाथी के सिर को ज्ञान, सूंढ़ को ऊं का प्रतीक माना गया है। दस दिन के उत्‍सव के बाद गणपति का विसर्जन किया जाता है। यह त्योहार ‘कैलाश पर्वत’ से अपनी मां देवी पार्वती के साथ भगवान गणेश के अवतरण का प्रतीक है।

 

गणेश पूजा विधि

शास्त्रों के अनुसार भगवान गणेश की पूजा सभी देवी-देवताओं में सबसे पहले की जाती है। भगवान गणेश प्रथम पूज्य देवता हैं। भगवान गणेशी पूजा-उपासना करने पर सभी तरह के शुभ कार्यों में आने वाली रुकावटें फौरन ही दूर हो जाती है। प्रतिदिन गणेश पूजा से व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा किस तरीके से करें।

सबसे पहले भगवान गणेश का आवहन करते हुए ऊं गं गणपतये नम: मंत्र का उच्चारण करते हुए चौकी पर रखी गणेश प्रतिमा के ऊपर जल छिड़के। भगवान गणेश की पूजा में इस्तेमाल होने वाली सभी सामग्रियों को बारी बारी से उन्हें अर्पित करें। भगवान गणेश की पूजा सामग्रियों में खास चीजें होती हैं ये चीजें- हल्दी, चावल, चंदन, गुलाल,सिंदूर,मौली, दूर्वा,जनेऊ, मिठाई,मोदक, फल,माला और फूल।

इसके बाद भगवान गणेश का साथ भगवान शिव और माता पार्वती की भी पूजा करें। पूजा में धूप-दीप करते हुए सभी की आरती करें। आरती के बाद 21 लड्डओं का भोग लगाएं जिसमें से 5 लड्डू भगवान गणेश की मूर्ति के पास रखें और बाकी को ब्राह्राणों और आम जन को प्रसाद के रूप में वितरित कर दें। अंत में ब्राह्राणों को भोजन कराएं और उन्हें दक्षिणा देकर उनका आशीर्वाद लें।

 

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गणपति / गणेश भगवान की पूजा सबसे पहले क्यों की जाती है

अन्य देवी देवताओं के कहानी या कथा की तरह ही गणेश जी की कहानी भी काफी रोचक और प्रेरणादायी है। चलिए आज उसके विषय में भी विस्तार से जान लेते हैं।

एक बार माता पार्वती स्नान करने जा रही थी। तब उन्होंने द्वार पर पहरेदारी करने के लिए अपने शरीर के मैल से एक पुतला बनाया और उसमें प्राण डालकर एक सुन्दर बालक का रूप दे दिया। माता पार्वती, बालक को कहती हैं कि मै स्नान करने जा रही हूँ और तुम द्वार पर खड़े रहना और बिना मेरी आज्ञा के बिना किसी को भी द्वार के अंदर मत आने देना। यह कहकर माता पार्वती, उस बालक को द्वार पर खड़ा करके स्नान करने चली जाती हैं।

वह बालक द्वार पर पहरेदारी कर रहा होता है कि तभी वहां पर भगवान् शंकर जी आ जाते हैं और जैसे ही अंदर जाने वाले होते तो वह बालक उनको वहीँ रोक देता है। भगवान शंकर जी उस बालक को उनके रास्ते से हटने के लिए कहते हैं लेकिन वह बालक माता पार्वती की आज्ञा का पालन करते हुए, भगवान शंकर को अंदर प्रवेश करने से रोकता है। जिसके कारण भगवान शंकर क्रोधित हो जाते हैं और क्रोध में अपनी त्रिशूल निकल कर उस बालक की गर्दन को धड़ से अलग कर देते हैं।

बालक की दर्द भरी आवाज को सुनकर जब माता पार्वती जब बहार आती है तो वो उस बालक के कटे सिर को देखकर बहुत दुखी हो जाती हैं। भगवान् शंकर को बताती है कि वो उनके द्वारा बनाया गया बालक था जो उनकी आज्ञा का पालन कर रहा था और माता पार्वती उनसे अपने पुत्र को पुन: जीवित करने के लिए बोलती है।

फिर भगवान शंकर अपने सेवकों को आदेश देते हैं कि वो धरतीलोक पर जाये और जिस बच्चे की माँ अपने बच्चे की तरफ पीठ करके सो रही हो, उस बच्चे का सिर काटकर ले आये। सेवक जाते हैं, तो उनको एक हाथी का बच्चा दिखाई देता है, जिसकी माँ उसकी तरफ पीठ करके सो रही होती है। सेवक उस हाथी के बच्चे का सिर काटकर ले आते है।

फिर भगवान् शंकर जी, उस हाथी के सिर को उस बालक के सिर स्थान पर लगाकर उसे पुनः जीवित कर देते हैं। भगवान् शंकर जी, उस बालक को अपने सभी गणों को स्वामी घोषित करते देते है। तभी से उस बालक का नाम गणपति रख दिया जाता है।

साथ ही गणपति को भगवान शंकर देवताओ में सबसे पहले उनकी पूजा होगी ऐसा वरदान भी देते हैं। इसीलिए सबसे पहले उन्ही की पूजा होती है। ऐसा माना जाता है कि उनकी पूजा के बिना कोई भी कार्य पूरा नहीं होता।

 

गणेश चतुर्थी व्रत कथा

एक बहुत गरीब बुढ़िया थी। वह दृष्टिहीन भी थीं। उसके एक बेटा और बहू थे। वह बुढ़िया नियमित रूप से गणेश जी की पूजा किया करती थी। उसकी भक्ति से खुश होकर एक दिन गणेश जी प्रकट हुए और उस बुढ़िया से बोले-बुढ़िया मां! तू जो चाहे सो मांग ले। ’ मैं तेरी मनोकामना पूरी करूंगा। बुढ़िया बोली मुझे तो मांगना नहीं आता, कैसे और क्या मांगू?

फिर गणेश जी बोलते है कि अपने बेटे-बहू से पूछकर मांग ले कुछ। फिर बुढ़िया अपने बेटे से पूछने चली जाती है और बेटे को सारी बात बताकर पूछती है की पुत्र मैं क्या मांगू। पुत्र कहता है कि मां तू धन मांग ले। उसके बाद बहू से पूछती तो बहू नाती मांगने के लिए कहती है।

फिर बुढ़िया ने सोचा कि ये सब तो अपने-अपने मतलब की चीज़े मांगने के लिए कह रहे हैं। फिर वो अपनी पड़ोसिनों से पूछने चली जाती है, तो पड़ोसन कहती है, बुढ़िया, तू तो थोड़े दिन और जीएगी, क्यों तू धन मांगे और क्यों नाती मांगे। तू तो अपनी आंखों की रोशनी मांग ले, जिससे तेरी जिंदगी आराम से कट जाए।

बहुत सोच विचार करने के बाद बुढ़िया गणेश जी से बोली- यदि आप प्रसन्न हैं, तो मुझे नौ करोड़ की माया दें, निरोगी काया दें, अमर सुहाग दें, आंखों की रोशनी दें, नाती दें, पोता, दें और सब परिवार को सुख दें और अंत में मोक्ष दें।’

यह सुनकर गणेशजी बोले- बुढ़िया मां! तुमने तो सब कुछ मांग लिया। फिर भी जो तूने मांगा है वचन के अनुसार सब तुझे मिलेगा और यह कहकर गणेशजी अंतर्धान हो जाते है। बुढ़िया मां ने जो- जो मांगा, उनको मिल गया। हे गणेशजी महाराज! जैसे तुमने उस बुढ़िया मां को सबकुछ दिया, वैसे ही सबको देना।

 

गणेश चतुर्थी के कितने मुख्य अनुष्ठान होते हैं और क्या हैं, साथ में इन्हें कैसे किया जाता है?

गणेश चतुर्थी के मुख्य रूप से चार अनुष्ठान होते हैं.

प्राणप्रतिष्ठा – इस प्रक्रिया में भगवान (deity) को मूर्ति में स्थापित किया जाता है

षडोपचार – इस प्रक्रिया में 16 forms (सोलह रूप) में गणेश जी को श्रधांजलि अर्पित किया जाता है

उत्तरपूजा – यह एक ऐसी पूजा है जिसमे एक बार भगवान को स्थापित कर दिया जाये उसके उपरांत मूर्ति को कहीं भी ले जाया जा सकता है 

गणपति विसर्जन – इस प्रक्रिया में मूर्ति को नदी या किसी पानी वाले स्थान में विसर्जित किया जाता है

 

गणेश मंत्र और उसका अर्थ

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥

अर्थ- घुमावदार सूंड वाले,विशालकाय शरीर,करोड़ों सूर्य के समान कीर्ति और तेज वाले, मेरे भगवान गणेश हमेशा मेरे सारे कार्य बिना बाधा के पूरे करें।

एकदन्तं महाकायं लम्बोदरगजाननम्ं।
विघ्नशकरं देवं हेरम्बं प्रणमाम्यहम्॥

अर्थ- जिनके एक दांत और सुंदर मुख है, जो शरण में आए भक्तों की रक्षा और प्रणतजनों की पीड़ा को नाश करने वाले हैं, उन शुद्ध स्वरूप आप गणपित को कई बार प्रणाम है।

गजाननाय पूर्णाय साङ्ख्यरूपमयाय ते ।
विदेहेन च सर्वत्र संस्थिताय नमो नमः ॥

अर्थ- हे गणेश्वर ! आप गज के समान मुख धारण करने वाले, पूर्ण परमात्मा और ज्ञानस्वरूप हैं । आप निराकार रूप से सर्वत्र विद्यमान हैं, आपको बारम्बार नमस्कार है।

 

गणेश जी की आरती 

गणेश आरती न केवल गणेश चतुर्थी के दौरान विशेष प्रमुखता रखती है, बल्कि पूरे वर्ष के दौरान, गणेश आरती का पाठ और प्रदर्शन सभी भक्तों पर शांति, खुशी और समृद्धि प्रदान करने के लिए कहा जाता है।

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥

एक दंत दयावंत, चार भुजा धारी ।
माथे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी ॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥

पान चढ़े फल चढ़े और चढ़े मेवा ।
लड्डुअन का भोग लगे, संत करें सेवा ॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥

अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया ।
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ॥

जय गणेश जय गणेश,जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती,पिता महादेवा ॥

‘सूर’ श्याम शरण आए,सफल कीजे सेवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥

जय गणेश जय गणेश,जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥

दीनन की लाज रखो,शंभु सुतकारी ।
कामना को पूर्ण करो, जाऊं बलिहारी ॥

जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती,पिता महादेवा ॥

 

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आशा है आज का लेख Ganesh Chaturthi Kyu Manaya Jata Hai | गणेश चतुर्थी की पौराणिक कथा आपको पसंद आया होगा और गणेश चतुर्थी की कहानी क्या है और इसे क्यूँ मनाया जाता है? गणेश चतुर्थी क्या है? गणेश चतुर्थी क्यों मनाया जाता है और गणेश चतुर्थी की पौराणिक कथा क्या है? से सम्बंधित ज्यादातर चीजों की जानकरी आपको यहां प्राप्त हुई होगी। आज का लेख आपको कैसा लगा, कमेंट करके जरूर बताएं और ऐसे ही कई तरह के लेखो के लिए हमसे Contact Us या Social Media के साथ जुड़े रहे।

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