नवजात शिशु की देखभाल हर माँ की पहली कोशिश रहती है ताकि शिशु को किसी तरह की परेशानियों का सामना ना करना पड़े। प्रसव के बाद नवजात शिशु की देखभाल माता पिता की पहली चिंता रहती है। इसलिए आज के ब्लॉग में मैं नवजात शिशु की देखभाल कैसे करे – Newborn Baby Care Tips in Hindi के बारे में बताने वाली हूँ।
शादी के बाद हर औरत माँ बनने के लिए उत्साहित रहती है और हो भी क्यों ना माँ बनने का एहसास ही कुछ ऐसा होता है। माँ बनने के बाद शिशु की देखभाल कैसे करनी चाहिए तथा नवजात शिशु की देखभाल करते समय किन-किन बिंदुओं पर ध्यान रखना चाहिए, यह जानकारी हर माता पिता को होना जरुरी होता है।
कई महिलाएं जो पहली बार माँ बनने जा रही होती है उनके दिमाग में कई तरह के सवाल चल रहे होते है। जैसे की बच्चें को कैसे उठाना है, बच्चें को भूख कब लगी है, बच्चें की सफाई कैसे रखनी है वगैरह वगैरह।
नौ महीनों के इंतज़ार के बाद आखिरकार जब हम अपने नन्हे मेहमान को गोद में लेते हैं तो वो पल, वो ख़ुशी, दुनिया की सभी खुशियों से ऊपर होती है।
उस नन्हे मेहमान का छोटू सा चेहरा, उसकी प्यारी सी मुस्कान, नन्हा सा शरीर, नन्हे-नन्हे हाथ पैर और उनकी छोटी छोटी सी उँगलियाँ, उसकी हर चीज, हर बात आपको बहुत अच्छी लगती है। उसके आने के बाद आप मातृत्व का एहसास करते हैं और उसे हर परेशानी से बचाना चाहते हैं।
उस नन्हे मेहमान के स्वागत के लिए आप बहुत उत्साहित रहते है और साथ ही उसकी देखभाल से जुड़ी चिंताएं भी आपको सताती है। जो पहली बार माता–पिता बनते है उनके लिए अपने नवजात शिशु के साथ शुरूआती कुछ महीने काफी अस्त–व्यस्त हो सकते हैं। नवजात शिशु की देखभाल करना एक चुनौती है खास तौर पर तब जब यह आपके साथ पहली बार होता है।
अपने शिशु को कितना दूध पिलाना है, कैसे नहलाना है, उठाना कैसे है, मालिश कैसे करनी है आदि सवाल आपके मन में आने लगते हैं। शिशु को खास देखभाल की जरूरत होती है और इससे जुड़ी जानकारियाँ माता-पिता के पास होना जरूरी होता है।
नवजात शिशु की देखभाल कैसे करे – Newborn Baby Care Tips in Hindi
नवजात शिशु की देखभाल के लिए आपको कई लोग कई तरह की सलाह देंगे। नवजात शिशु की देखभाल के संबंध में किस सलाह को मानना चाहिए यह तय करना आपके लिए दुविधापूर्ण हो सकता है।
अपने नवजात शिशु की देखभाल करना, एक थका देने वाला और चुनौतीपूर्ण अनुभव होता है, लेकिन यह आपके जीवन के सबसे खास, अद्भुत और अतुलनीय अनुभवों में से एक भी होता है। शिशु को निरंतर देख-भाल और ध्यान देने की आवश्यकता होती है।
जब आप अपने नवजात शिशु को अस्पताल से घर ले आते हैं तो उसके लिए कुछ जरुरी सामानों की जरुरत आपको पड़ेगी। इनमें से कुछ सामान आपको पहले से ले के रखने होंगे कुछ आप उसके घर आने के बाद में भी ले सकते है। इन सामानों की सूची निचे दी गई है:
1. शिशु के आरामदायक तथा मुलायम कपड़े
2. डायपर और डायपर रैश क्रीम
3. बेबी वेट वाइप्स
4. मुलायम कंबल
5. सिर ढकने के लिए मुलायम टोपी
6. मुलायम तौलिया
7. पालना या झूला
8. नहलाने के लिए बेबी टब
9. बेबी साबुन और शैंपू
10. मुलायम दस्ताने और मोजे
11. फीडिंग बोतल इत्यादि
शिशु के जन्म के बाद देखभाल (Baby care tips in hindi) करने के लिए मैं यहाँ कुछ टिप्स बताने वाली हूँ जो निम्नलिखित हैं :
1. स्तनपान:
आपके शिशु को समय पर स्तनपान कराना जरुरी है। एक नवजात शिशु को हर 2 से 3 घंटे पर स्तनपान कराने की जरुरत होती है। नवजात शिशु को कम से कम छह महीने तक सिर्फ माँ का दूध पिलाना चाहिए इसके अलावा कुछ नहीं। जब भी आप शिशु को स्तनपान कराएं तो आप ये सुनिश्चित कर लें की शिशु ने निप्पल को ठीक से मुँह में पकड़ लिया है।
अगर शिशु ने सही ढंग से निप्पल को मुँह में लिया है तो आपको दर्द महसूस नहीं होगा। नवजात शिशु का पेट बस एक मटर के दाने जितना बड़ा होता है इसलिए वो दूध कम ही पियेगा। स्तनपान कराने से पहले स्तन भारी होते है, जैसे ही शिशु दूध पी लेता है आपके स्तनों में भारीपन कम होना चाहिए। ये संकेत है की आपके शिशु ने पर्याप्त दूध पी लिया है।
जब भी स्तनपान कराएं एक एक करके दोनों स्तनों से दूध पिलाएं, इससे आपको स्तनों में दर्द और भारीपन में राहत महसूस होगी। अगर तब भी भारीपन और दर्द है तो थोड़ा थोड़ा दूध निकाल कर फेंकते रहे।
दूध निकालने के लिए आप अपने हाथो या दूध निकालने वाले पंप की मदद ले सकती है। पर ध्यान रखें बस उतना ही दूध निकाले जिससे बस आपको स्तनों में भारीपन और दर्द कम हो जाये। आपके शिशु को भी दूध चाहिए इसलिए इस बात का विशेष ध्यान रखें। छह महीने बाद आप अपने शिशु को स्तनपान के साथ ठोस आहार भी खिला सकती है।
अगर शिशु को किसी कारणवश स्तनपान नहीं कराया जा रहा तो उसे चिकित्सक द्वारा सुझाया गया फॉर्मूला दूध दें। जब भी आप फॉर्मूला दूध दें तो उसकी मात्रा 60 से 90 मि.ली. होना चाहिए। आप इसके लिए फीडिंग बोतल का इस्तेमाल कर सकती है।
2. शिशु का स्नान और मालिश:
हमारे भारत देश में शिशु को मालिश करने का चलन नया नहीं है फिर भी पहली बार बने माता-पिता इस बात को लेकर घबराते है। शिशु की मालिश कैसे करें, कब करें, किस तेल से करें, कब नहलाएं, कैसे नहलाएं आदि जैसे सवाल मन में आते रहते है।
शिशु की मालिश का सही समय उसे नहलाने से लगभग 10 मिनट पहले और उसके सोने के पहले करना उचित रहता है। दिन में कमसे कम 3-4 बार शिशु की मालिश होना जरुरी है। मालिश के लिए आप सरसो तेल, बेबी आयल, जैतून का तेल इत्यादि ले सकते है। पर ध्यान रखें की तेल केमिकल वाला ना हो नहीं तो उससे आपके शिशु को नुकसान हो सकता है।
शिशु की मालिश से शिशु का सामाजिक तथा मानसिक विकास होता है। साथ ही मालिश से शिशु की मांसपेशियों को आराम मिलता है तथा उसका तनाव भी दूर होता है। मालिश से शिशु को बेहतर नींद मिलती है और वो आराम से सो जाता है।नवजात शिशुओं की त्वचा बेहद नाजुक होती है, इसलिए शुरूआती तीन हफ्ते में गीले कपड़े से बच्चे का शरीर पोंछना काफी है। बहुत ज्यादा देर तक पानी में रहने से शिशु की त्वचा सूख सकती है। इस बात का भी ध्यान रखें कि पानी ज्यादा गर्म ना हो और ना ज्यादा ठंडा। अगर आप बेबी शैंपू का इस्तेमाल कर रहे हैं, तो एक हाथ से बच्चे की आंखों को ढक लें। नहाने के बाद शिशु बेहतर नींद सो पाते हैं।
3. डकार दिलाना:
शिशु को दूध पिलाने के बाद उसे डकार दिलाना जरूरी होता है। जब शिशु दूध पीते है उस समय हवा भी निगल लेते हैं, जिससे उनके पेट में गैस या पेट में मरोड़ की समस्या हो सकती है। डकार दिलाने से यह अतिरिक्त हवा बहार निकल जाती है, तथा शिशु के दूध उलटने और पेट के दर्द को रोकने में भी लाभकारी है।
डकार दिलाने के लिए शिशु को धीरे से एक हाथ से अपने सीने से लगा लें, उसकी ठोड़ी आपके कंधे पर टिकी होनी चाहिए और अपने दूसरे हाथ से उसकी पीठ को धीरे-धीरे थपथपाएं जब तक वह डकार ना ले।
4. नाभिरज्जु के बचे हुए भाग की देखभाल:
पहले महीने में नाभिरज्जु के बचे हुए भाग की देखभाल करना नवजात शिशु की देखभाल का एक महत्वपूर्ण पहलू है। डिलीवरी के बाद जब गर्भनाल को काटकर शिशु को माँ से अलग किया जाता है, तो गर्भनाल का छोटा-सा हिस्सा, जिसे ठूंठ कहते हैं, बच्चे की नाभि पर रह जाता है। शिशु के जन्म के 5 से 15 दिन के अंदर यह हिस्सा भी सूखकर गिर जाता है।
इसलिए जबतक ये सुखकर गिर नहीं जाये तबतक इसकी देखभाल करनी पड़ती है। ऐसा ना करने से बच्चे को संक्रमण हो सकता है। ठूंठ के आसपास के हिस्से को पानी से अच्छी तरह साफ करें और फिर साफ कपड़े से सुखाएं।
अगर शिशु को डायपर पहनाएं तो उसे ठूंठ से नीचे बांधें और उस हिस्से को खुला रखें। इस हिस्से को हमेशा सूखा रखें। किसी भी तरह का असामान्य बदलाव जैसे लालिमा, सूजन, बदबूदार निर्वहन या मवाद, और नाभि क्षेत्र से खून बहना आदि दिखने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
5. शिशु के कपडे और उनकी सफाई:
शिशु के कपडे एकदम मुलायम और ढीले होने चाहिए ताकि उनको उसे आराम मिले। शिशु एक दिन में कई कपडे गंदे करते है। शिशु के कपड़ों की सफाई के लिए अच्छे सॉफ्ट डिटर्जेंट का प्रयोग करना चाहिए जिससे उनकी त्वचा को कोई नुकसान ना हो।
6. नवजात शिशु को पकड़ने का तरीका:
शिशु का शरीर बहुत नाजुक होता है इसलिए उन्हें सही ढंग से पकड़ना बहुत जरुरी होता है। जरा-सी लापरवाही के कारण भारी मुश्किल का सामना करना पड़ सकता है। शिशु को जब भी पकड़ें तो उसके सिर और गर्दन को एक हाथ से सहारा देेते हुए पकड़ें।
ऐसा इसलिए क्यूंकि अभी उसकी गर्दन की मांसपेशियां स्वतंत्र रूप से सिर को संभालने के लिए पर्याप्त रूप से मजबूत नहीं हैं।रीढ़ की हड्डी अभी भी बढ़ रही है और मजबूत हो रही है। शिशु जब 3 महीने का होता है उसके बाद उसकी गर्दन की मांसपेशियां स्वतंत्र रूप से सिर को सँभालने में सक्षम होंगी।
7. नवजात शिशु को कैसे संभालें:
पहली बार माता-पिता बनने वाले जोड़ों के लिए नवजात शिशु को संभालना थोड़ा मुश्किल हो सकता है। शिशु को छूने से पहले हाथों को अच्छे से धोएं या सैनीटाइज करें।
इस बात का ध्यान रखें की शिशु को ज्यादा गर्मी या ठण्ड ना लग रही हो, उसका डायपर गिना ना हो, वो भूखा ना हो, उसे हवा में ना उछालें, उसे जोर से हिलाएं नहीं, उसके पास ऐसा कुछ ना हो रहा हो जिससे वो चिड़चिड़ा होने लगे। आप उसका मन बहलायें, उसके साथ खेले, उससे बातें करें, उसे एक स्थिति में ज्यादा देर तक सुलाए ना रखें।
8. शिशु को सुलाना:
एक नवजात शिशु 24 में से 16 घंटे सोता है इसलिए उसे आपको हर 2 घंटे पर जगा कर दूध पिलाना चाहिए। आमतौर पर शिशु 2 से 4 घंटे तक सोते ही रहते हैं और जब उन्हे भूख लगती है या गीले होते हैं तो जाग जाते हैं।
अगर कोई शिशु, उतनी देर नहीं सोता जितना कि आम तौर पर उसकी उम्र के शिशु को सोना चाहिए, तो चिंता ना करें क्यूंकि हर शिशु अलग होता है और उसकी नींद और आदतें भी अलग होती है। शिशु जब सोता है तो उसके सिर की स्थिति को बदलते रहना चाहिए ताकि उसका सिर चपटा ना हो जाये। शिशु को हमेशा पीठ के बल सुलाएं।
शिशु को सुलाने के लिए बड़े लोग राई (सरसो) के दानों (mustard seed) का तकिया बना कर उसपे शिशु का सिर रख कर सुलाने की सलाह देते है, तो आप इसका चुनाव भी कर सकते है जिससे शिशु का सिर चपटा ना हो।
9. शिशु के नाख़ून काटना:
नवजात शिशु के नाख़ून और शरीर दोनों ही बहुत कोमल होते है। लेकिन कोमल नाखूनों से भी वो खुद को खरोच लगा सकते है। इसलिए आप शिशु के नाखुनो को हफ्ते में एक बार अवश्य काट दें। साथ ही उसे नहलाते समय उसके नाखूनों की सफाई भी करें।
शिशु जब सो रहा हो तभी उसके नाख़ून ख़ून काटने का सही समय है। नहीं तो वो हिलते डुलते रहेंगे और इससे नाख़ून भी ठीक से नहीं कटेगा और शिशु को कही और भी कट लग सकता है। शिशु के नाख़ून बहुत तेज़ी से बढ़ते है। जब भी नाख़ून काटें बस थोड़ा थोड़ा काटें ताकि बस उससे वो खुद को खरोच ना लगा ले।
10. डायपर से जुड़ी देखभाल:
नवजात शिशु अगर अच्छे से दूध पीते है तो वो दिन में कई बार गिला और मल त्याग करते है। इसलिए बार बार जाँच करते रहे और उसका डायपर हर 2 से 3 घण्टे पे या मल त्याग करने के बाद बदलते रहे। अगर समय से डायपर नहीं बदला तो शिशु को रैश हो सकता है। शिशु के गुप्तांग को साफ व सूखा रखें।
डायपर बदलते समय शिशु के गुप्तांग को हलके गुनगुने पानी से साफ करके, अच्छी तरह से पोंछकर ही नया डायपर पहनाएं। अगर शिशु को रैश हो जाएं तो उसे रैश क्रीम लगाएं और समस्या गंभीर होने पर तुरंत चिकित्सक से संपर्क करें। अगर बिना डायपर के, सिर्फ शिशु की कपड़ों से काम चल सकता है तो कोशिश करें डायपर कम ही पहनाएं।
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जब हम पहली बार माता-पिता बनते हैं तो शुरुआत में नवजात शिशु की देखभाल करना आपको थोड़ा मुश्किल लग सकता है, पर यकीन मानिये ये एहसास दुनिया के सबसे खूबसूरत एहसासों में से एक होता है। जैसे ही थोड़ा समय बीतेगा आपको इसकी आदत पड़ जाएगी और आप इसे आसानी से उत्साह के साथ करने लगेंगे। अपने Newborn baby की देखभाल करते हुए आप इन सारी परेशानियों को हँसते हुए पर कर पाएंगे।
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