महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है | महाशिवरात्रि व्रत कथा, महत्व और पूजाविधि

MahaShivratri 2023: भारत देश में मनाये जाने वाले त्योहारों से एक त्यौहार महा शिवरात्रि का भी होता है। शिवरात्रि के दिन लोग भगवान शिव की उपासना करते हैं और उपवास रखते हैं। वैसे तो महाशिवरात्रि के व्रत बारे में ज्यादतर लोग जानते ही हैं लेकिन महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है इसके बारे में बहुत कम ही लोगों को पता है।

हमारा देश भारत अपनी धार्मिक सभ्यताओं के कारण पूरे विश्व में लोकप्रिय है। भारत में हर धर्म से जुड़े कई सारे त्योहार मनाए जाते हैं। कुछ त्यौहार कुछ विशेष धर्म के लोग ही मनाते हैं और कई ऐसे त्यौहार हैं जिन्हें पूरा देश मनाता है, जिसमे से एक महाशिवरात्रि का त्यौहार है। महाशिवरात्रि भगवान शिव से जुड़ा हुआ त्योहार है और भगवान शिव को पूरे देश में अलग-अलग रूपों और नामों से जाना जाता है। 

महाशिवरात्रि का त्यौहार पूरे देश में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि ‘महाशिवरात्रि क्यों मनाते हैं?’ अगर नहीं तो मेरा आज का यह लेख आपके लिए काफी उपयोगी साबित होने वाला हैं क्यूंकि आज के इस लेख में मैं आपको महाशिवरात्रि की शुरुआत से लेकर महाशिवरात्रि पूजाविधि तक की सभी जानकारी देने वाली हूँ।

वैसे तो हर भारतीय महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिवरात्रि माना जाता है लेकिन फाल्गुन माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को शिव जी और माता पार्वती का विवाह हुआ था। इसलिए इस पर्व को शिव और पार्वती के विवाह के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इस दिन को शिव भक्त बेहद खास मानते हैं।

भोलेनाथ के भक्त इस दिन को श्रद्धाभाव और पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। इस दिन भक्त अपने आराध्य देव भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए मंदिर जरूर जाते हैं। महाशिवरात्रि की तिथि अंग्रेजी महीनों के हिसाब से हर साल बदलती रहती हैं। साल 2023 में महाशिवरात्रि का त्यौहार 18 फरवरी को मनाया जाएगा।

Table of Contents

महाशिवरात्रि क्या है – What is Maha Shivratri in Hindi

महाशिवरात्रि एक हिंदू त्योहार है जो कि महादेव शिव से जुड़ा हुआ है। जिस दिन शिव जी ने तांडव किया था, वह फाल्गुन महीने के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी (चौदहवीं) तिथि थी। महापुराण के अनुसार वही खास तिथि महाशिवरात्रि हुई। शिवरात्रि का अर्थ ‘शिव की रात्रि‘। शास्त्र के अनुसार, हर सोमवार का दिन शिव की पूजा के लिए उपयुक्त है। हर महीने के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि शिवरात्रि होती है। लेकिन फाल्गुन में महीने में वही खास तिथि महाशिवरात्रि कहलाती है।

शिवरात्रि को लेकर पूरे देश भर में अलग-अलग मान्यताएं प्रचलित है। इस दिन भगवान शिव की आराधना की जाती है और देश भर में अनेक जागरण होते हैं। भगवान शिव के मंदिरों में महाशिवरात्रि के दिन काफी सारे भक्त आते हैं और कुछ मंदिरों में इस दिन भक्तों की संख्या हजारों-लाखों में होती है।

महाशिवरात्रि के दिन देश के बारह ज्योतिर्लिंगों में शिवभक्तों का जमावड़ा लगता है। इनके नाम हैं- सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, औंकारेश्वर, केदारनाथ, भीमशंकर, विश्वेश्वर, त्र्यंबकेश्वर, वैद्यनाथ, नागेश्वर, रामेश्वर और घिष्णेश्वर। हिंदू शैव संप्रदाय वालों के लिए यह सबसे बड़ा धार्मिक अनुष्ठान है।

दुनिया के सभी शिवालयों में इस दिन अंधकार और अज्ञानता को दूर करने का संकल्प लिया जाता है। दिनभर उपवास रखकर शिवलिंग को दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल से स्नान कराया जाता है।

विषयमहाशिवरात्रि शुभ मुहूर्त 2023
साल2023
महाशिवरात्रि 202318 फरवरी
दिनशनिवार
तिथिमाघ (फाल्गुन) महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी
किसकी पूजा की जाती हैमहादेव
कहा मनाया जाता हैभारत में
किसका त्योहार हैहिंदू
भगवान शिव के वाहननंदी
भगवान शिव से जुड़ी पुराणशिवपुराण

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महाशिवरात्रि क्यों मनाया जाता है | महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती हैं 

अलग-अलग ग्रंथों में महाशिवरात्रि की अलग-अलग मान्यता मानी गई है। महाशिवरात्रि भारतीयों का एक प्रमुख त्यौहार है। यह भगवान शिव का प्रमुख पर्व है। माघ फागुन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का यह पर्व मनाया जाता है। कुछ हिन्दू मान्यताओं के अनुसार इसी दिन से ही सृष्टि का निर्माण हुआ था। कहा जाता है कि शुरुआत में भगवान शिव का केवल निराकार रूप था।

भारतीय ग्रंथों के अनुसार फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी पर आधी रात को भगवान शिव निराकार से साकार रूप में आए थे। इस मान्यता के अनुसार भगवान शिव इस दिन अपने विशालकाय स्वरूप अग्निलिंग में प्रकट हुए थे। ऐसी मान्यता हैं की इसी दिन भगवान शिव करोड़ो सूर्यो के समान तेजस्व वाले लिंगरूप में प्रकट हुए थे।

इसी दिन भगवान शिव का विवाह देवी पार्वती के साथ हुआ था। महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव व पत्नी पार्वती की पूजा होती हैं। साल में होने वाली 12 शिवरात्रियों में से महाशिवरात्रि को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। भारत सहित पूरी दुनिया में महाशिवरात्रि का पावन पर्व बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। कश्मीर शैव मत में इस त्यौहार को हर-रात्रि और बोलचाल में ‘हेराथ’ या ‘हेरथ’ भी कहा जाता हैं।

भारतीय मान्यता के अनुसार फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को सूर्य और चंद्र अधिक नजदीक रहते हैं। इस दिन को शीतल चन्द्रमा और रौद्र शिवरूपी सूर्य का मिलन माना जाता हैं। इसलिए इस चतुर्दशी को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता हैं। आध्यात्मिक व धर्म ग्रंथों के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की पूजा आराधना की जाती है। जिससे भगवान शिव प्रसन्न होकर अपने भक्तों को मनचाहा वरदान देते हैं।

आध्यात्मिक महत्व के तौर पर महाशिवरात्रि पर्व मनाने के पीछे अनेक मत है। अनेक मान्यताएं हैं, परंतु शिव पुराण आदि लेखों में शिवरात्रि को मनाने का महत्व बताया जाता है। कि इस दिन भगवान शिव ने सृष्टि को बचाने हेतु हलहाल विष को ग्रहण किया था और पूरी सृष्टि को इस भयंकर विष से मुक्त किया था।

कहा जाता हैं की इस दिन भगवान शिव प्रदोष के समय दुनिया को अपने रूद्र अवतार में आकर तांडव करते हुए अपनी तीसरी आंख से भस्म कर देते हैं। फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को ही पार्वती और शिव की शादी का दिन माना जाता हैं।

महाशिवरात्रि कथा। महाशिवरात्रि व्रत कथा

भगवान शिव को विभिन्न संप्रदायों के लोग विभिन्न दृष्टियो से देखते हैं। भगवान शिव के भक्त महाशिवरात्रि के दिन को काफी हर्षोल्लास के साथ मानते हैं। कुछ लोग इस दिन जागरण करवाते हैं तो कुछ लोग भगवान शिव की पूजा करवाते हैं।

वहीं दूसरी तरफ इस दिन कुछ संप्रदाय के लोग नशीले पदार्थों जैसे कि हुक्का व शराब आदि का सेवन भी करते हैं, जो की बहुत ही गलत है। भारत में महादेव के करोड़ों भक्त है। यह बात काफी रोचक है कि आजकल की युवा पीढ़ी सबसे अधिक महादेव को मानती है।

महाशिवरात्रि पर आधारित कथाएं

महाशिवरात्रि की कथा : 

परमपिता ब्रह्मा के मानस पुत्र दक्ष जब प्रजापतियों के राजा बने तब उन्होंने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ में सिर्फ भगवान भोले शंकर को छोड़कर तीनों लोकों के अतिथियों को न्योता भेजा गया। भगवान शिव राजा दक्ष के जमाई थे। लेकिन दक्ष को भोलेनाथ का अलबेला और मस्तमौला स्वभाव तनिक भी नहीं भाता था।

जब शिव की अर्धांगिनी और दक्ष की पुत्री सती को पता चला कि उनके पिता ने यज्ञ का आयोजन किया है, तो उन्होंने भी उसमें सम्मिलित होने की इच्छा जताई। लेकिन भोलेनाथ बिना आमंत्रण के यज्ञ में जाने को तैयार नहीं हुए। इसलिए सती को वहां अकेले ही जाना पड़ा।

माता सती जैसे ही सभागृह में पहुंचीं, उन्हें शिव जी निंदा सुनाई दी। अपनी पुत्री सती को देखकर भी उनके पिता नहीं रुके, वह भगवान शिव की बुराई करते ही रहे। सती ने अपने पिता को समझाने का प्रयास किया, लेकिन राजा दक्ष ने उनकी एक न सुनी। सती अपना और अपने पति का अपमान सह नहीं पाईं और वह यज्ञ स्थल पर बने अग्निकुंड में कूद गईं।

सती के अग्निकुंड में कूदने का दुखद समाचार लेकर नंदी कैलाश पर्वत पहुंचे। भगवान शिव सती को बचाने के लिए यज्ञस्थल पर गए, लेकिन तब तक सब खत्म हो चुका था। कैलाशपति ने क्रोधित होकर सती का शरीर उठा लिया और तांडव करने लगे।

जिस दिन शिव ने तांडव किया था, वह फाल्गुन महीने के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी (चौदहवीं) तिथि थी। महापुराण के अनुसार वही खास तिथि महाशिवरात्रि हुई। शिवरात्रि का अर्थ है “शिव की रात्रि”। शास्त्र के अनुसार, हर सोमवार का दिन शिव की पूजा के लिए उपयुक्त है। हर महीने के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि शिवरात्रि होती है। फाल्गुन में महीने में वही खास तिथि महाशिवरात्रि कहलाती है।

सती के शोक में भगवान शिव गहन समाधि में चले गए और ध्यानमग्न हो गए। उनके ध्यान को कोई भी तोड़ हीनहीं पा रहा था। भगवान विष्णु और ब्रह्मा भी सारे जतन करके हार गए। सृष्टि का संचालन भी बाधित होने लगा था। सभी देवताओं की समझ में नहीं आ रहा था कि भगवान शिव का ध्यान तोड़ने के लिए क्या जाए।

दूसरी तरफ हिमालय की बेटी के रूप में सती का पुनर्जन्म होता है, जिनका नाम पार्वती रखा गया। पार्वती शिव को पाने के लिए कठिन तपस्या करती हैं। पहले तो शिव ने पार्वती को तपस्या करने से रोक दिया, लेकिन अन्य देवताओं के सहारे और तप करके पार्वती शिव का मन जीत लेती हैं। फिर एक विशाल समारोह में शिव-पार्वती का विवाह हो जाता है।

शिवपुराण के अनुसार, इसी रात शिव और पार्वती का विवाह हुआ था। इसका मतलब हुआ, यानि की शिव और शक्ति या यूँ कहें की पुरुष और आदिशक्ति यानी प्रकृति का मिलन हो जाता है। एक और मान्यता के अनुसार इसी दिन बह्माण्ड की रचना हुई थी। उस दिन भी फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि थी।

इसीलिए लड़कियां शिव के समान वर पाने के लिए इस दिन शिव की पूजा करती हैं। मध्यकालीन इतिहास से पता चलता है कि संसार की मंगल कामना के लिए लड़कियां, विवाहित, विधवाएं सभी स्त्रियां शिवरात्रि का व्रत करती हैं। इसका मतलब यह नहीं कि शिवरात्रि सिर्फ स्त्रियों के लिए है।

शिवरात्रि का पहला अनुष्ठान एक पुरुष ने ही किया था। वह कहानी भी स्वयं शिव ने बताई है। शिव पुराण के अनुसार, पुराने जमाने में काशी यानी आज की वाराणसी में एक निर्दयी शिकारी रहता था। उसे धर्म-कर्म से कुछ लेना-देना नहीं था। पशुहत्या ही उसका रोज़ का काम था। एक दिन वह शिकार करने के लिए जंगल गया और रास्ता भटक गया। शाम घिर आई।

जंगल के जीव-जन्तुओं के डर से वह एक पेड़ पर चढ़ गया। दिन-भर कुछ खाने को नहीं मिला था। वह डाली पर बैठे-बैठे पत्ते तोड़कर नीचे फेंकने लगा। जिस पेड़ पर वो बैठा था वह बेल का पेड़ था। पेड़ के नीचे एक शिवलिंग था लेकिन शिकारी को इस बारे में कुछ भी पता नहीं था। जिस दिन ये घटना घाटी वो दिन शिव चतुर्दशी यानी महाशिवरात्रि का था। शिकारी के फेंके हुए पत्ते बार-बार शिवलिंग पर चढ़ रहे थे।

दूसरे दिन शिकारी घर लौटकर देखता है कि उसके घर एक अतिथि आया हुआ है। वह शिकारी स्वयं न खाकर अपने हिस्से का भोजन अतिथि को दे देता है। इस तरह मंत्रोच्चार न जानते हुए भी उस शिकारी ने सही तरीके से शिवरात्रि व्रत का पालन कर लिया।

जब शिकारी की मृत्यु हुई तब शिवदूत और यमदूत के बीच उसे अपने साथ ले जाने पर विवाद हो गया। शिवदूत उसे अपने साथ ले जाना चाहते थे और यमदूत अपने साथ। कोई छोड़ने को तैयार नहीं। अंत में विवाद निपटाने के लिए यमराज पहुंचते हैं।

शिवदूतों ने जब कारण बताया, तो यमराज ने उनकी बात मान ली। कहा जाता है कि अगर कोई विधि-विधान से शिव चतुर्दशी का पालन करता है तो उसे यमलोक नहीं जाना पड़ता। उसे स्वर्गवास या मोक्ष मिलता है। इसीलिए हजारों वर्षों से शिव चतुर्दशी और शिवरात्रि मनाए जाने की परंपरा चली आ रही है।

महाशिवरात्रि के दिन देश के बारह ज्योतिर्लिंगों में शिवभक्तों का जमावड़ा लगता है। इनके नाम हैं- सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, औंकारेश्वर, केदारनाथ, भीमशंकर, विश्वेश्वर, त्र्यंबकेश्वर, वैद्यनाथ, नागेश्वर, रामेश्वर और घिष्णेश्वर।

हिंदू शैव संप्रदाय वालों के लिए यह सबसे बड़ा धार्मिक अनुष्ठान है। दुनिया के सभी शिवालयों में इस दिन अंधकार और अज्ञानता को दूर करने का संकल्प लिया जाता है। दिनभर उपवास रखकर शिवलिंग को दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल से स्नान कराया जाता है।

महाशिवरात्रि का महत्व

महाशिवरात्रि का आध्यात्मिक महत्व |Spiritual significance of Mahashivaratri

भगवान शिव को एक संहारक से कही पहले एक ज्ञानी माना जाता हैं। योगिक परंपरा के अनुसार शिव कोई देवता नहीं बल्कि आदि गुरु है जिन्होंने सबसे पहले ज्ञान प्राप्त किया और उस ज्ञान का प्रसारण किया। जिस दिन उन्होंने ज्ञान की चरम सीमा को छुआ और वह स्थिर हुए और उस दिन को शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता हैं।
इसके अलावा वैरागी लोग भी भगवान शिव को एक वैरागी ही मानते हैं जो सांसारिक जीवन से दूर है। कुछ लोगों की मान्यता के अनुसार भगवान शिव एक सत्य रूप है और यह पूरा संसार केवल मोहमाया है। विशेष आराधना के माध्यम से हम सभी लोग इस मोह माया से दूर होकर सत्य रूप को प्राप्त कर सकते हैं और शिव में मिल सकते हैं।

यौगिक परम्परा में भगवान शिव को एक ज्ञानी और वैरागी माना गया हैं। यह परम्परा शांति में विश्वास रखती हैं। इस वजह से महाशिवरात्रि आध्यात्मिक रूप से भी काफी खास हैं। शिवरात्रि के दिन शिव भक्त सवेरे से लेकर शाम तक भगवान शिव का ध्यान करते हैं। जिससे आध्यात्मिक शक्ति उजागर होती है और प्रकाश पुंज का अवलोकन होता है। भगवान शिव को जितना अधिक सांसारिक लोग मानते हैं उससे कहीं ज्यादा अधिक आध्यात्मिक पथ पर चलने वाले लोग भी मानते हैं।

शिवरात्रि का वैज्ञानिक महत्व | Scientific importance of celebrating Shivratri

भगवान शिव दुष्टों का विनाश करने, अधर्म पर धर्म की विजय स्थापित करने, असत्य पर सत्य की विजय स्थापित करने, दुष्ट शक्तियों पर दिव्य शक्तियों का प्रभाव स्थापित करने हेतु संहार करते हैं तथा उस शक्ति का ह्रास और हरण करते हैं जो सत्यता को अप्रकाशित करती है। यदि हम महाशिवरात्रि के वैज्ञानिक महत्व की बात करें, तो इस रात ग्रह का उत्तरी गोलार्द्ध इस प्रकार अवस्थित होता है कि मनुष्य के भीतरी ऊर्जा प्राकृतिक रूप से ऊपर की ओर जाती है।

यह एक ऐसा दिन है, जब प्रकृति मनुष्य को उसके आध्यात्मिक शिखर तक जाने में मदद करती है। शिवरात्रि के दिन भगवान शिव की पूजा आराधना करने हेतु व्यक्ति को ऊर्जा कुंज के साथ सीधे बैठना पड़ता है। जिससे रीड की हड्डी मजबूत होती है और व्यक्ति एक अद्भुत प्राकृतिक शक्ति का एहसास महसूस करता है।

महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है

भगवान शिव को महादेव क्यूँ कहा जाता है?

भारत देश में कई सारे देवी-देवताओं की मान्यता है लेकिन भारतीय ग्रंथों के अनुसार कुछ देवों को सर्वोपरि माना गया है जिनमें से विष्णु, ब्रह्मा और शिव प्रमुख हैं। इन तीनों देवताओं को त्रिदेव भी कहा जाता है। लेकिन इन सभी देवताओं में ही भगवन शिव का स्थान पूरी तरह से अलग है, ख़ास इसीलिए ही उने देव नहीं महादेव कहा जाता है। भगवान शिव को पूरे देश में कई अलग-अलग रूप और नामों से जाना जाता है।

कहीं पर शिव को नीलकंठ के नाम से जानते हैं तो कहीं पर नटराज के नाम से पूजा जाता है। भारत के कई प्रसिद्ध मंदिर और तीर्थ जैसे कि अमरनाथ और कैलाशनाथ भगवान शिव पर ही आधारित है जहां पर हर साल हजारों लाखों लोग दर्शन के लिए आते हैं। भगवान शिव की भारतीय सभ्यता में काफी मान्यता हैं और उन्ही से जुड़ा त्यौहार हैं महाशिवरात्रि। महाशिवरात्रि को भगवान शिव का सबसे बड़ा त्यौहार माना जाता हैं।

महाशिवरात्रि शुभ मुहूर्त 2023 | महाशिवरात्रि पूजा मुहूर्त 2023

Mahashivratri Pujan Shubh Muhurat हिंदू कैलेंडर के अनुसार महाशिवरात्रि 2023 फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष केकी चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है जो कि इस साल 18 फरवरी को पड़ रही है, इसलिए 18 फरवरी को देश भर में धूमधाम के साथ महाशिवरात्रि का त्योहार मनाया जाएगा।

महाशिवरात्रि पर सुब​ह से भगवान शिव शंकर की पूजन प्रारंभ हो जाएगी। लेकिन आप इस दिन शुभ-उत्तम मुहूर्त में पूजा करके अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं। इस दिन पूजा के लिए शुभ-उत्तम मुहूर्त सुबह 08 बजकर 22 मिनट से सुबह 09 बजकर 46 मिनट तक है।

चतुर्दशी तिथि का समापन अगले दिन 19 फरवरी दिन रविवार को शाम 04 बजकर 18 मिनट पर होगा। इस शुभ दिन पर पूरे दिन महा शिवरात्रि मुहूर्त प्रभावी रहता है। पूरे दिन कई लोग अपनी प्रार्थना में महा मृत्युंजय मंत्र का जाप करते हैं। आप कभी भी भगवान शिव की पूजा कर सकते हैं।

वैसे महा शिवरात्रि के दिन रात्रि के समय में शिव पूजा करना ज्यादा अच्छा माना जाता है। इस दिन प्रदोष व्रत भी है, ऐसे में आप शाम 06 बजकर 13 मिनट से शाम 07 बजकर 49 मिनट के बीच भोलेनाथ की पूजा कर सकते हैं। इसके अलावा निशिता मुहूर्त में सिद्धियों के लिए महाशिवरात्रि की पूजा करते हैं।

महाशिवरात्रि कब मनाई जाती हैं?

अधिकतर भारतीय त्योहारों की तरह महाशिवरात्रि भी भारतीय महीनों के अनुसार ही मनाई जाती है। वैसे तो हर भारतीय महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिवरात्रि माना जाता है लेकिन फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। महाशिवरात्रि की दिनांक अंग्रेजी महीनों के हिसाब से हर साल बदलती रहती हैं। साल 2023 में महाशिवरात्रि का त्यौहार 18 फरवरी को मनाया जाएगा।

क्यों मनाई जाती है महाशिवरात्रि

फाल्गुन माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को शिव जी और माता पार्वती का विवाह हुआ था। इसलिए इस पर्व को शिव और पार्वती के विवाह के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इस दिन को शिव भक्त बेहद खास मानते हैं। भोलेनाथ के भक्त इस दिन को श्रद्धाभाव और पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। इस दिन भक्त अपने आराध्य देव भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए मंदिर जरूर जाते हैं।

महाशिवरात्रि पूजाविधि | महाशिवरात्रि पूजा विधि (Mahashivratri Puja Vidhi)

विभिन्न स्थानों पर महाशिवरात्रि को लेकर विभिन्न मान्यताएं प्रचलित है और इस वजह से महाशिवरात्रि को कई तरह से मनाया जाता हैं। शिवभक्त इस दिन पवित्र नदियो जैसे की गंगा व यमुना में सूर्योदय के समय स्नान करते हैं। स्नान के बाद साफ व पवित्र वस्त्र पहने जाते हैं। इसके बाद घरों व मंदिरों में विभिन्न मंत्र व जापों के द्वारा भगवान शिव की पूजा की जाती है।

शिवलिंग को दूध व जल से स्नान कराया जाता हैं। महाशिवरात्रि की सम्पूर्ण पूजाविधि की बात करे तो सबसे पहले शिवलिंग को पवित्र जल या दूध से स्नान कराया जाता हैं। स्नान के बाद शिवलिंग पर सिंदूर लगाया जाता हैं। इसके बाद शिवलिंग शिवलिंग पर बेलपत्र, भांग, धतूरा, जायफल, कमल गट्टे, फल, फूल, मिठाई, मीठा पान, इत्र आदि चढ़ाए जाते हैं। इसके बाद अन्न व धूप को अर्पित किया जाता हैं। कुछ लोग शिवलिंग पर धन भी चढाते हैं।

इसके बाद आध्यात्मिक दृष्टि से शिवलिंग के आगे ज्ञान के प्रतीक के रूप में एक दीपक जलाया जाता हैं। इसके बाद शिवलिंग पर पान के पत्ते चढ़ाये जाते हैं जिनके बारे में कई विशेष मान्यताये हैं। महाशिवरात्रि को जाग्रति की रात माना जाता हैं।

महाशिवरात्रि को रात में शिव की महान पूजा व आरती की जाती हैं। महाशिवरात्रि की रात को शिव व पार्वती की काल्पनिक रूप से शादी की जाती हैं और बारात निकली जाती हैं। कुछ सम्प्रदायों में इस रात नाचने, गाने व खुशिया मनाने की मान्यता है अतः वह मेलो व जागरण का आयोजन करते हैं। पूजा के समय ॐ न एं मो भगवतेरूद्राय, ॐ नमः शिवाय रूद्राय् शम्भवाय् भवानीपतये नमो नमः मंत्रों का जाप करें। 

महाशिवरात्रि के मंत्र (Mahashivratri Mantra)

महामृत्युंजय मंत्र
ऊँ हौं जूं स: ऊँ भुर्भव: स्व: ऊँ त्र्यम्बकं यजामहेसुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्.
ऊर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्ऊँ भुव: भू: स्व: ऊँ स: जूं हौं ऊँ..

ध्यान मंत्र
ध्यायेनित्यं महेशं रजतगिरिनिभंचारूचंद्रां वतंसं.
रत्नाकल्पोज्ज्वलांगं परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम..
पद्मासीनं समंतात्स्तुततममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानं.
विश्वाद्यं विश्वबद्यं निखिलभय हरं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रम्..

रुद्र गायत्री मंत्र
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥

आरोग्य मंत्र
माम् भयात् सवतो रक्ष श्रियम् सर्वदा.
आरोग्य देही मेंदेव देव, देव नमोस्तुते..
ओम त्र्यम्बकं यजामहेसुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्.
उर्वारुकमिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्..

शिवरात्रि और महाशिवरात्रि में अंतर

भगवान शिव के भक्तों के लिए शिवरात्रि और महाशिवरात्रि का दिन काफी खास होता है। शिवरात्रि और महाशिवरात्रि एक नहीं है दोनों में अंतर होता है। चलिए अब शिवरात्रि और महाशिवरात्रि में अंतर को समझते हैं।

शिवरात्रि
कई लोग महाशिवरात्रि को ही शिवरात्रि भी बोलते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। ये दोनों ही पर्व अलग-अलग हैं। शिवरात्रि हर महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर आती है।

महाशिवरात्रि
महाशिवरात्रि साल भर में एक ही बार मनाई जाती है। फाल्गुन मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। इसलिए इस पर्व को शिव और पार्वती के विवाह के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। यानी महाशिवरात्रि साल में एक बार तो वहीं शिवरात्रि हर महिने मनाई जाती है।

भगवान शिव को और कौन कौन से नाम से जाना जाता है?

शंभु, ईश, शंकर, शिव, चंद्रशेखर, महेश्वर, महादेव, भव, भूतेश, गिरीश, हर, त्रिलोचन के नाम से भी जाना जाता हैं।

 

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दोस्तों भारत देश त्योहारों का देश है। बहुत से लोगों को सभी त्योहारों का ज्ञान है पर ज्यादातर लोगों को सिर्फ अपने धर्म से जुड़े त्योहारों के बारे में ही पता होता है। इसलिए मैंने अपने ब्लॉग पर कई सारे त्योहारों के बारे में जानकरी देने की पूरी कोशिश की है। इसी उद्देश्य से मैंने आज का यह लेख “महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती हैं” और “महाशिवरात्रि का महत्व” क्या है लिखा हैं।

आशा है आपको मेरा ये लेख महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती हैं आपको पसंद आया होगा। आज के लेख महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती हैं से जुड़े किसी भी सवाल के लिए आप मुझे कमेंट कर सकते हैं।

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शिवरात्रि हर मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को आती है लेकिन महाशिवरात्रि फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को आती है।

शिव महापुराण के मुताबिक फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की चौदस को आधी रात में शिवजी लिंग रूप में प्रकट हुए थे। तब भगवान विष्णु और ब्रह्माजी ने पहली बार शिवलिंग की पूजा की। इसलिए शिवरात्रि मनाते हैं।

महाशिवरात्रि शिव की प्रिय तिथि है शिवरात्रि शिव और शक्ति के मिलन का महापर्व है। फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को शिवरात्रि पर्व मनाया जाता है।

शिव महापुराण की रूद्रसंहिता में लिखा है, शिव-पार्वती विवाह अगहन महीने के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि पर हुआ था। ये तिथि अमूमन नवंबर-दिसंबर में आती है। जो कि इस साल 29 नवंबर, बुधवार को रहेगी।

महाशिवरात्रि पर पूरे दिन-रात पूजा कर सकते हैं। स्कंद, शिव और लिंग पुराण का कहना है कि इस त्योहार के नाम के मुताबिक, रात में शिवलिंग का अभिषेक करना बहुत ही शुभ माना जाता है।

शिवरात्रि पर पूरे विधि-विधान से शिव पूजा करनी चाहिए। अगर समय न मिले या मंदिर न जा पाएं तो घर पर ही कुछ जरूरी चीजों के साथ ऊँ नम: शिवाय मंत्र का जाप हुए शिव पूजा कर सकते हैं। 

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