Lal Bahadur Shastri Jayanti 2022 : अमेरिका- पाक को जिन्होंने दिखाया था आइना | ताशकंद में शास्त्री जी की मौत या हत्या

Lal Bahadur Shastri Jayanti: 2 अक्टूबर को राष्ट्रपिता गांधीजी के साथ-साथ देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की भी जयंती होती है। पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का जन्म उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में 2 अक्टूबर 1904 को हुआ था। उनकी माता का नाम राम दुलारी था और पिता का नाम मुंशी प्रसाद श्रीवास्तव था। शास्त्री जी की पत्नी का नाम ललिता देवी था। काशी विद्या पीठ से उन्होंने स्नातक की पढ़ाई की थी।

शास्त्री जी एक कुशल नेतृत्व वाले गांधीवादी नेता थे और सादगी भरी जीवन व्यतीत करते थे। लाल बहादुर शास्त्री जी भारत के वो PM थे जिन्होंने पाकिस्तान के घर में घुसकर हमला करने की इजाजत दी थी। लाल बहादुर शास्त्री को उनकी उदारता और जनसेवा के लिए प्रत्येक वर्ष 2 अक्टूबर को उनकी जयंती के अवसर पर याद किया जाता है। 1965 में उरुवा, प्रयागराज में एक सार्वजनिक सभा में लाल बहादुर शास्त्री द्वारा ‘जय जवान जय किसान’ का नारा दिया गया जो कि आज भी पूरे देश में गूंजता है।

पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री उन महान भारतीयों में से एक थे जिन्होंने हमारे सामूहिक जीवन पर अमिट छाप छोड़ी है। लाल बहादुर शास्त्री का योगदान इस मायने में अद्वितीय था कि वे भारत में आम आदमी के जीवन के सबसे करीब थे। लाल बहादुर शास्त्री की उपलब्धियों को एक व्यक्ति की अलग-अलग उपलब्धियों के रूप में नहीं बल्कि सामूहिक रूप से हमारे समाज की उपलब्धियों के रूप में देखा जाता था।

नेहरू की मृत्यु के बाद शास्त्री जी ने भारत के दूसरे प्रधान मंत्री का पद संभाला जिसके तुरंत बाद, भारत पर पाकिस्तान द्वारा हमला किया गया था। उसी समय, देश में खाद्यान्न की कमी थी। शास्त्री जी ने भारत की रक्षा के लिए सैनिकों को उत्साहित करने के लिए जय जवान जय किसान का नारा दिया और साथ ही आयात पर निर्भरता कम करने के लिए खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने के लिए किसानों को अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने के लिए प्रोत्साहित किया। जिसके बाद यह एक लोकप्रिय नारा बन गया और पूरे देश में गूंजने लगा।

लाल बहादुर शास्त्री जी के जय जवान जय किसान नारे को लोगों ने समय-समय बदलकर प्रयोग किया है। जैसे कि अटल बिहारी बाजपायी ने 1998 में पोखरन टेस्ट की सफलता के बाद जय जवान जय किसान जय विज्ञान का नारा दिया। उसके बाद लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी, जालंधर में 106वीं भारतीय विज्ञान कांग्रेस में “भविष्य का भारत: विज्ञान और प्रौद्योगिकी” पर बोलते हुए पीएम मोदी ने जय जवान, जय किसान और अटल बिहारी वाजपेयी के जय विज्ञान के प्रसिद्ध नारे के लिए जय अनुसंधान को जोड़ा। जो कि राष्ट्रीय विकास के लिए अनुसंधान कार्य के महत्व पर जोर दें।

 

श्री लाल बहादुर शास्त्री जी का जीवन परिचय

श्री लाल बहादुर शास्त्री जी का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी से सात मील दूर एक छोटे से रेलवे टाउन, मुगलसराय में हुआ था। उनके पिता एक स्कूल शिक्षक थे। जब लाल बहादुर शास्त्री केवल डेढ़ वर्ष के थे तभी उनके पिता का देहांत हो गया था। उनकी माँ अपने तीनों बच्चों के साथ अपने पिता के घर जाकर बस गईं। उस छोटे-से शहर में लाल बहादुर की स्कूली शिक्षा कुछ खास नहीं रही लेकिन गरीबी की मार पड़ने के बावजूद उनका बचपन पर्याप्त रूप से खुशहाल बीता।

शास्त्री जी को वाराणसी में चाचा के साथ रहने के लिए भेज दिया गया था ताकि वे उच्च विद्यालय की शिक्षा प्राप्त कर सकें। घर पर सब उन्हें नन्हे के नाम से पुकारते थे। वे कई मील की दूरी नंगे पांव से ही तय कर विद्यालय जाते थे, यहाँ तक की भीषण गर्मी में जब सड़कें अत्यधिक गर्म हुआ करती थीं तब भी उन्हें ऐसे ही जाना पड़ता था।

बड़े होने के साथ-ही लाल बहादुर शास्त्री विदेशी दासता से आजादी के लिए देश के संघर्ष में अधिक रुचि रखने लगे। वे भारत में ब्रिटिश शासन का समर्थन कर रहे भारतीय राजाओं की महात्मा गांधी द्वारा की गई निंदा से अत्यंत प्रभावित हुए। लाल बहादुर शास्त्री जब केवल ग्यारह वर्ष के थे तब से ही उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर कुछ करने का मन बना लिया था।

गांधी जी ने असहयोग आंदोलन में शामिल होने के लिए अपने देशवासियों से आह्वान किया था, इस समय लाल बहादुर शास्त्री केवल सोलह वर्ष के थे। उन्होंने महात्मा गांधी के इस आह्वान पर अपनी पढ़ाई छोड़ देने का निर्णय कर लिया था। उनके इस निर्णय ने उनकी मां की उम्मीदें तोड़ दीं। उनके परिवार ने उनके इस निर्णय को गलत बताते हुए उन्हें रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन वे इसमें असफल रहे। लाल बहादुर ने अपना मन बना लिया था। उनके सभी करीबी लोगों को यह पता था कि एक बार मन बना लेने के बाद वे अपना निर्णय कभी नहीं बदलेंगें क्योंकि बाहर से विनम्र दिखने वाले लाल बहादुर अन्दर से चट्टान की तरह दृढ़ हैं।

लाल बहादुर शास्त्री ब्रिटिश शासन की अवज्ञा में स्थापित किये गए कई राष्ट्रीय संस्थानों में से एक वाराणसी के काशी विद्या पीठ में शामिल हुए। यहाँ वे महान विद्वानों एवं देश के राष्ट्रवादियों के प्रभाव में आए। विद्या पीठ द्वारा उन्हें प्रदत्त स्नातक की डिग्री का नाम ‘शास्त्री’ था लेकिन लोगों के दिमाग में यह उनके नाम के एक भाग के रूप में बस गया।

1927 में उनकी शादी हो गई। उनकी पत्नी ललिता देवी मिर्जापुर से थीं जो उनके अपने शहर के पास ही था। उनकी शादी सभी तरह से पारंपरिक थी। दहेज के नाम पर एक चरखा एवं हाथ से बुने हुए कुछ मीटर कपड़े थे। वे दहेज के रूप में इससे ज्यादा कुछ और नहीं चाहते थे।

1930 में महात्मा गांधी ने नमक कानून को तोड़ते हुए दांडी यात्रा की। इस प्रतीकात्मक सन्देश ने पूरे देश में एक तरह की क्रांति ला दी। लाल बहादुर शास्त्री विह्वल ऊर्जा के साथ स्वतंत्रता के इस संघर्ष में शामिल हो गए। उन्होंने कई विद्रोही अभियानों का नेतृत्व किया एवं कुल सात वर्षों तक ब्रिटिश जेलों में रहे। आजादी के इस संघर्ष ने उन्हें पूर्णतः परिपक्व बना दिया।

आजादी के बाद जब कांग्रेस सत्ता में आई, उससे पहले ही लोग राष्ट्रीय संग्राम के नेता विनीत एवं नम्र लाल बहादुर शास्त्री के महत्व को समझ चुके थे। 1946 में जब कांग्रेस सरकार का गठन हुआ तो इस ‘छोटे से डायनमो’ को देश के शासन में रचनात्मक भूमिका निभाने के लिए कहा गया। उन्हें अपने गृह राज्य उत्तर प्रदेश का संसदीय सचिव नियुक्त किया गया और जल्द ही वे गृह मंत्री के पद पर भी आसीन हुए।

कड़ी मेहनत करने की उनकी क्षमता एवं उनकी दक्षता उत्तर प्रदेश में एक लोकोक्ति बन गई। वे 1951 में नई दिल्ली आ गए एवं केंद्रीय मंत्रिमंडल के कई विभागों का प्रभार संभाला। रेल मंत्री; परिवहन एवं संचार मंत्री; वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री; गृह मंत्री एवं नेहरू जी की बीमारी के दौरान बिना विभाग के मंत्री रहे। उनकी प्रतिष्ठा लगातार बढ़ रही थी। एक रेल दुर्घटना के लिए, जिसमें कई लोग मारे गए थे, वे स्वयं को जिम्मेदार मानते थे इसलिए उन्होंने रेल मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था।

देश एवं संसद ने उनके इस अभूतपूर्व पहल को काफी सराहा। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने इस घटना पर संसद में बोलते हुए लाल बहादुर शास्त्री की ईमानदारी एवं उच्च आदर्शों की काफी तारीफ की। उन्होंने कहा कि उन्होंने लाल बहादुर शास्त्री का इस्तीफा इसलिए नहीं स्वीकार किया है क्यूंकि जो कुछ हुआ वे इसके लिए जिम्मेदार नहीं हैं। बल्कि इसलिए स्वीकार किया है क्योंकि इससे संवैधानिक मर्यादा में एक मिसाल कायम होगी। रेल दुर्घटना पर लंबी बहस का जवाब देते हुए लाल बहादुर शास्त्री ने कहा; “शायद मेरे लंबाई में छोटे होने एवं नम्र होने के कारण लोगों को लगता है कि मैं बहुत दृढ नहीं हो पा रहा हूँ। यद्यपि शारीरिक रूप से में मैं मजबूत नहीं है लेकिन मुझे लगता है कि मैं आंतरिक रूप से इतना कमजोर भी नहीं हूँ।”

अपने मंत्रालय के कामकाज के दौरान भी वे कांग्रेस पार्टी से संबंधित मामलों को देखते रहे एवं उसमें अपना भरपूर योगदान दिया। 1952, 1957 एवं 1962 के आम चुनावों में पार्टी की निर्णायक एवं जबर्दस्त सफलता में उनकी सांगठनिक प्रतिभा एवं चीजों को नजदीक से परखने की उनकी अद्भुत क्षमता का बड़ा योगदान था।

तीस से अधिक वर्षों तक अपनी समर्पित सेवा के दौरान लाल बहादुर शास्त्री अपनी उदात्त निष्ठा एवं क्षमता के लिए लोगों के बीच प्रसिद्ध हो गए। विनम्र, दृढ, सहिष्णु एवं जबर्दस्त आंतरिक शक्ति वाले शास्त्री जी लोगों के बीच ऐसे व्यक्ति बनकर उभरे जिन्होंने लोगों की भावनाओं को समझा। वे दूरदर्शी थे जो देश को प्रगति के मार्ग पर लेकर आये। लाल बहादुर शास्त्री महात्मा गांधी के राजनीतिक शिक्षाओं से अत्यंत प्रभावित थे। अपने गुरु महात्मा गाँधी के ही लहजे में एक बार उन्होंने कहा था – “मेहनत प्रार्थना करने के समान है।” महात्मा गांधी के समान विचार रखने वाले लाल बहादुर शास्त्री भारतीय संस्कृति की श्रेष्ठ पहचान हैं।

 

लाल बहादुर शास्त्री जी के जीवन से जुड़ी 10 अहम बातें

  • लाल बहादुर शास्त्री जी ने विषम परिस्थितियों में शिक्षा हासिल की। कहा जाता है कि वह नदी तैरकर रोज स्कूल जाया करते थे। क्योंकि उस समय गांवों में बहुत कम ही स्कूल होते थे।
  • 16 साल की उम्र में उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़ दी और गांधी जी के असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए। शास्त्री जी का विवाह 1928 में ललिता शास्त्री के साथ हुआ। जिनसे दो बेटियां और चार बेटे हुए।
  • लाल बहादुर शास्त्री ने 1921 के असहयोग आंदोलन से लेकर 1942 तक अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। शास्त्री जी 16 साल की उम्र में गांधी जी के साथ देशवासियों के लिए असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए थे।
  • शास्त्री जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद 1965 में भारत पाकिस्तान का युद्ध हुआ जिसमें शास्त्री जी ने विषम परिस्थितियों में देश को संभाले रखा।
  • सेना के जवानों और किसानों के महत्व बताने के लिए उन्होंने ‘जय जवान जय किसान’ का नारा भी दिया।
  • लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बनने से पहले रेल मंत्री, परिवहन एवं संचार मंत्री, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री, गृह मंत्री एवं नेहरू जी की बीमारी के दौरान बिना विभाग के मंत्री रहे।
  • 1964 में जब लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने। उनके शासनकाल में 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ।
  • पाकिस्तान से युद्ध के दौरान देश में अन्न की कमी हो गई। देश भुखमरी की समस्या से गुजरने लगा था। उस संकट के काल में लाल बहादुर शास्त्री जी ने अपनी तनख्वाह लेना बंद कर दिया था। देश के लोगों से लाल बहादुर शास्त्री जी ने अपील की थी कि वो हफ्ते में एक दिन एक वक्त व्रत रखें।
  • 11 जनवरी, 1966 को ताशकंद में अंतिम सांस ली थी। 10 जनवरी, 1966 को ताशकंद में पाकिस्तान के साथ शांति समझौते पर करार के महज 12 घंटे बाद (11 जनवरी) लाल बहादुर शास्त्री की अचानक मृत्यु हो गई।
  • लाल बहादुर शास्त्री ने दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय अभियान श्वेत क्रांति को बढ़ावा दिया। उन्होंने भारत में खाद्य उत्पादन बढ़ाने के लिए हरित क्रांति को भी बढ़ावा दिया। श्वेत क्रांति और हरित क्रांति में उनका भी योगदान था।

 

ताशकंद में शास्त्री जी की मौत या हत्या

लाल बहादुर शास्त्री की मौत आज भी एक रहस्य है। 10 जनवरी, 1966 को पाकिस्तान के साथ ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर करने के महज 12 घंटे बाद 11 जनवरी को रात 1: 32 बजे उनकी मौत हो गई। बताया जाता है कि शास्त्री जी निधन से आधे घंटे पहले तक बिल्कुल ठीक थे, लेकिन 15 से 20 मिनट में उनकी तबीयत खराब हो गई। इसके बाद डॉक्टरों ने उन्हें इंट्रा-मस्कुलर इंजेक्शन दिया। इंजेक्शन देने के चंद मिनट बाद ही उनकी मौत हो गई।

आधिकारिक तौर पर कहा जाता है कि उनकी मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई। शास्त्री जी को दिल से जुड़ी बीमारी पहले से ही थी और 1959 में उन्हें एक हार्ट अटैक भी आया था। इसके बाद उनके परिजन और दोस्त उन्हें कम काम करने की सलाह देते थे, लेकिन 9 जून, 1964 को देश का प्रधानमंत्री बनने के बाद उन पर काम का दबाव बढ़ता ही चला गया, जबकि इसके विपरीत कुछ रिपोर्ट में दावा किया गया कि उनको साजिश के तहत मारा गया था।

 

सोवियत पीएम और पाकिस्तानी राष्ट्रपति ने दिया कंधा

शास्त्री जी के शव को दिल्ली लाने के लिए जब ताशकंद एयरपोर्ट पर ले जाया जा रहा था, तो रास्ते में सोवियत संघ, भारत और पाकिस्तान के झंडे झुके हुए थे। शास्त्री जी के ताबूत को कंधा देने वालों में सोवियत प्रधानमंत्री कोसिगिन और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान भी थे।

 

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