गुरु पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है और इसका महत्व क्या है | Guru Purnima Kyu Manaya Jata Hai Hindi

गुरु पूर्णिमा क्यों मनाया जाता है | गुरु पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है और इसका महत्व क्या है | Guru Purnima Kyu Manaya Jata Hai Hindi (Guru Purnima 2023):

भारत वर्ष में पौराणिक काल से गुरु को सर्वस्व माने जाने की परंपरा रही है। हिंदू धर्म में गुरु पूर्णिमा का बहुत महत्व है। यह दिन गुरुओं को समर्पित है। ऐसा माना जाता है की इस दिन गुरुओं की पूजा करने और उनका आशीर्वाद लेने से बहुत लाभ होता है। गुरु पूर्णिमा आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं की गुरु पूर्णिमा क्यों मनाया जाता है? 

एक बहुत ही पुरानी कहावत है कि गुरु ही है जो अपने शिष्य को सद्मार्ग के दर्शन कराता है और इस बात को नकारा भी नहीं जा सकता। भारतवर्ष में मनाए जाने वाले लगभग हर त्यौहार, व्रत और उपवास के पीछे कोई न कोई पौराणिक कथाएं एवं मान्यता रहती ही है। ठीक इसी प्रकार से गुरु पूर्णिमा को मनाने के पीछे भी एक मान्यता है जो कि महर्षि वेदव्यास से जुड़ी है।

गुरु पूर्णिमा का पर्व हर वर्ष आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था। महर्षि वेदव्यास को चारों वेदों का ज्ञाता माना जाता है। उन्होंने ही सर्वप्रथम चारों वेदों का ज्ञान मानव जाति को प्रदान किया था। यही कारण है कि महर्षि वेदव्यास को प्रथम गुरु की उपाधि प्राप्त है। इस वर्ष गुरु पूर्णिमा का पर्व आज यानी 3 जुलाई 2023 दिन सोमवार को मनाया जा रहा है।

भारत देश में गुरु और शिष्य के बीच सबसे पवित्र रिश्ता माना जाता है और शिष्य अपने गुरुओं को पूज्यनीय मानते हैं। इसलिए आज के इस लेख में मैं आपको गुरु पूर्णिमा के विषय में पूरी जानकारी विस्तार पूर्वक देने की कोशिश करुँगी ताकि आप लोगों को इस बात का संपूर्ण ज्ञान हो सके कि, गुरु पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है और इसका महत्व क्या है, तो फिर चलिए शुरू करते हैं।

गुरु पूर्णिमा क्या है | गुरु पूर्णिमा क्यों मनाया जाता है – What is Guru Purnima 2023 in Hindi

गुरु पूर्णिमा मूल रूप से भारत में मनाया जाने वाला पर्व है। इस दिन शिष्य अपने गुरु के प्रति आदर, सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। हिंदू धर्म के अनुसार, भगवान वेद व्यास का जन्म आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन हुआ था, जिसे आज गुरु पूर्णिमा के त्योहार के रूप में मनाया जाता है। भारत देश में गुरु का महत्व भगवान से भी अधिक बताया गया है।

ऐसा माना जाता है कि अच्छी-बुरी संस्कृति, धर्म-अधर्म इत्यादि का ज्ञान गुरु ही अपने शिष्यों को देते हैं। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है और इस दिन पूरी श्रद्धा से गुरु की पूजा की जाती है। भारत में गुरुओं को देव तुल्य माना जाता है। आमतौर पर इस दिन को हर कोई नहीं मनाता लेकिन बहुत से लोग इस दिन को सम्मान पूर्वक मनाते हैं और बहुत से लोग गुरु पूर्णिमा को काफी भव्य उत्सव के रूप में मनाते हैं।

गुरु पूर्णिमा मनाने के पीछे एक पौराणिक मान्यता भी है जो कि महर्षि वेदव्यास जी से जुड़ी है। बहुत से लोग इस दिन महर्षि वेदव्यास के छायाचित्र की पूजा करते हैं। पौराणिक मान्यता है कि गुरु पूर्णिमा के दिन अपने गुरुओं का आशीर्वाद लेने से जीवन सफल हो जाता है।

गुरु पूर्णिमा 2023 शुभ मुहूर्त

गुरु पूर्णिमा के दिन पवित्र नदी में स्नान-दान और पूजा का विशेष महत्व है, जिसके लिए पहला शुभ मुहूर्त 3 जुलाई सुबह 05:27 से 07:12 बजे तक है और दूसरा शुभ मुहूर्त सुबह 08:56 बजे से 10:41 मिनट तक रहेगा। उसके बाद दोपहर में 02:10 बजे से 03:54 बजे तक रहेगा।

गुरु पूर्णिमा कब मनाया जाता है?

भारत में गुरु पूर्णिमा का पर्व हर वर्ष आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। माना जाता है कि इस दिन 3000 ई. वर्ष पूर्व महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था। उनके प्रति आदर और सम्मान में ही प्रतिवर्ष आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है।

गुरु पूर्णिमा की कहानी | गुरु पूर्णिमा की कथा

गुरु पूर्णिमा का त्यौहार हिन्दुओं के लिए बेहद खास होता है क्यूंकि इस दिन सनातन धर्म के पहले गुरु महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था। ये पर्व हर वर्ष हर साल आषा ढ़ शुक्लपक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है। गुरु पूर्णिमा का पर्व महर्षि वेदव्यास को समर्पित है। ऐसा माना जाता है की महर्षि वेदव्यास भगवान विष्णु के अंश के रूप में धरती पर आए थे। इनके पिता का नाम ऋषि पराशर था और माता का नाम सत्यवती था।

वेदव्यास जी को बचपन से ही अध्यात्म में काफी रुचि थी। उन्होंने अपने माता – पिता से प्रभु दर्शन की इच्छा प्रकट की जिसके लिए उन्होंने वन में जा कर तपस्या करने की मांग की। लेकिन उनकी माता ने उनकी इस इच्छा को नहीं माना। महर्षि वेदव्यास ने अपनी माता से इसके लिए हठ किया और अपनी बात को मनवा ही लिया। लेकिन उनकी माता ने आज्ञा देते हुए कहा की जब भी घर का ध्यान आए तो वा पस लौट आना।

इसके बाद वेदव्यास जी तपस्या हेतु वन में चले गए और वहां जा कर उन्हों ने कठोर तपस्या की। इस तपस्या के पुण्य से उन्हें संस्कृत भाषा में प्रवीणता हासिल हुई। इसके बाद वेदव्यास जी ने चारों वेदों का विस्तार से अध्ययन किया और ब्रह्मसूत्र, महाभारत, श्रीमद्भागवत सहित अट्ठारह महापुराणों की रचना की। इसी के साथ उन्हें अमरता का वरदान प्राप्त हुआ। ऐसी मान्यता है कि किसी न किसी रूप में महर्षि वेदव्यास आज भी हमारे बीच में उपस्थित हैं। इसलिए हिंदू धर्म में वेदव्यास जी को भगवान के रूप में पूजा जाता है और गुरु पूर्णिमा पर इनकी विधि विधान से पूजा की जाती है।

गुरु पूर्णिमा का महत्व

गुरु का महत्व भारतवर्ष की संस्कृति में प्राचीनकाल से ही रहा है। गुरु एवं शिष्य की बहुत सी कथाएं भी प्रचिलित हैं। भारत में गुरु एवं शिष्य के बीच का एक पवित्र और अनोखा रिश्ता माना गया है। गुरु के प्रति आदर, सम्मान व कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए ही गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि गुरु अपने शिष्य के जीवन को अंधकार से हटाकर प्रकाश की ओर ले जाता है। गुरु पूर्णिमा, पुरे वर्ष में पड़ने वाली सभी पूर्णिमा से खास मानी जाती है। कहा जाता है कि गुरु पूर्णिमा का पुण्य अर्जित करने से वर्ष में पड़ने वाली सभी पूर्णिमाओं का पुण्य मिल जाता है।

गुरु पूर्णिमा का पर्व कैसे मनाया जाता है?

प्राचीनकाल में गुरु अपने आश्रमों में शिष्यों को मुफ्त शिक्षा देते थे और सभी शिष्य मिलकर अपने गुरु के लिए पूजन आयोजित करते थे। गुरु पूर्णिमा का पर्व भिन्न-भिन्न तरीके से मनाया जाता है। आमतौर पर लोग इस दिन अपने गुरु का पूजन कर उन्हें उपहार देकर चरणस्पर्श करते हैं और गुरु का आशीर्वाद ग्रहण करते हैं। बहुत से लोग जिनके गुरु दिवंगत हो गए हैं वे अपने गुरु की चरण पादुकाओं की पूजा करते हैं।

कुछ लोग गुरु पूर्णिमा का पर्व मुहूर्त में मनाते है। सुबह जल्दी उठकर दैनिक क्रिया से निवृत्त होकर स्नान करते हैं। स्नान करने के बाद भगवान विष्णु, शंकर एवं बृहस्पति की पूजा करने के बाद व्यास जी की पूजा करते हैं। इस दिन सफेद या पीला वस्त्र धारण कर शिष्य अपने गुरु का चित्र उत्तर दिशा में बनाते या रखते हैं। गुरु के चित्र को फूलों की माला पहनाकर, भोग लगाकर आरती एवं पूजन किया जाता है इसके बाद चरणस्पर्श कर गुरु का आशीर्वाद ग्रहण किया जाता है।

 

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पौराणिक मान्यता के अनुसार गुरु पूर्णिमा को महाभारत के रचयिता महर्षि वेदव्यास का जन्म दिवस माना जाता है। उनके सम्मान में इस दिन को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। शास्त्रों में यह भी कहा जाता है कि गुरु पूर्णिमा के दिन ही महर्षि वेदव्यास ने चारों वेद की रचना की थी और इसी कारण से उनका नाम वेदव्यास पड़ा।

गुरु पूर्णिमा में महर्षि वेदव्यास जी की पूजा होती है। मान्यता है कि आषाढ़ पूर्णिमा तिथि को ही वेदों के रचयिचा महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था। महर्षि वेदव्यास के जन्म पर सदियों से गुरु पूर्णिमा के दिनगुरु पूजन की परंपरा चली आ रही है।

गुरू पूर्णिमा का व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है. मान्यता है कि महर्षि वेद व्यास का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा के दिन हुआ था

माता को ही प्रथम गुरु माना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि जितना माता अपनी संतान को प्रेम करती है और उसकी हितैषी होती है, उतना अन्य कोई नहीं होता है। संतानों को भी माता से सर्वाधिक शिक्षा मिलती है। इस कारण माता प्रथम गुरु है। किसी ने बड़ा ही सुन्दर लिखा है कि अपने बच्चे के लिए मां शास्त्र का काम करती है और पिता शस्त्र का।

महर्षि वेदव्यास को समस्त मानव जाति का गुरु माना जाता है।

 

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