क्या आप सब जानते हैं की आयुर्वेद के अनुसार टॉयलेट करने के नियम : Toilet Rules According to Ayurveda क्या हैं? उषापान और आयुर्वेद – आयुर्वेद के ग्रंथों में उषापान के बारे में क्या बताया गया है? वाग्भट ऋषी के अनुसार पानी कैसे पीना चाहिए? मल त्याग की सही विधि क्या है (Toilet rules in Ayurveda)? हमारे हिन्दू धर्म के अनुसार शौच के प्राचीन नियम क्या हैं? और टॉयलेट करने के नियमों के बारे में आयुर्वेद क्या कहता है?
दोस्तों शौच यानि मलत्याग वो प्रक्रिया है जिसमें पाचन के बाद बचा-खुचा अनुपयोगी वेस्ट मटेरियल शरीर से बाहर निकाला जाता है। एक औसत उम्र वाला व्यक्ति अपनी पूरी ज़िंदगी में छह महीने से ज़्यादा वक़्त टॉयलेट में बिताता है। इतना ही नहीं, वह हर साल तक़रीबन 145 किलो मल त्याग करता है, यानि अपने शरीर के वज़न से लगभग दोगुना।
मल त्यागने के दौरान आंतरिक तंत्रिका तंत्र और पैरासिंपेथेटिक तंत्र कई प्रक्रियाएं पूरी करवाते हैं। जैसे कि बड़ी आंत में मल जमाव पर नियंत्रण या बाहरी स्फिंक्टर या प्यूबोरेक्टैलिस मांसपेशी को शिथिल करना। प्यूबोरेक्टैलिस मांसपेशी के कारण गुदा सही दशा में आ जाता है, जिससे पेट में आंतरिक दबाव बनता है और मल बाहर निकल जाता है।
आयुर्वेद में टॉयलेट के नियमों के लिए कई सुझाव दिए गई है। विज्ञान भी मानता है की शौच के समय भी हमे कई नियमो का पालन करना चाहिए और कुछ गलतियां भी है जो हम शौच के समय करते है हमे वो भी नहीं करने चाहिए। तो चलिए आगे जानते है शौच यानि मलत्याग के कुछ नियमों के बारे में और साथ ही जानेंगे की उषापान यानि सुबह खाली पेट गरम पानी पीने के फायदे क्या क्या होते हैं।
हिन्दू धर्म के अनुसार शौच के वैदिक नियम (Toilet rules in Hinduism – Vedic Rules of going to the Bathroom)
आयुर्वेद के अनुसार टॉयलेट करने के नियम : Toilet Rules According to Ayurveda
अगर आपसे पूछा जाये की सुबह उठते ही सबसे पहले आप कौन सा काम करते है तो आपका जवाब क्या होगा?
शायद आप ये कहेंगे की सबसे पहले तो सब बाथरूम जाते है, फ्रेश होते है, फिर ब्रश करते है उसके बाद नहाते है फिर कोई और काम करते है।
लेकिन अगर आपसे कोई ये सवाल पूछे की की आप जानते है आयुर्वेद में टॉयलेट को लेकर कुछ नियम है, क्या आप उनके बारे में जानते है? तो आपका जवाब क्या होगा?
यही ना की क्या टॉयलेट के लिए भी कोई नियम है? पानी और खाने का नियम तो सुना था पर टॉयलेट का भी नियम होता है ये नहीं पता था।
तो दोस्तों आपको बता दें की ये 100% सत्य है। आयुर्वेद में टॉयलेट को ले के कई नियम है, जिनका पालन ना करने से आप कई तरीके की बिमारियों का सामना कर सकते है।
हम में से ज्यादातर लोग सुबह उठने के बाद टॉयलेट जाते है पर ऐसे लोग भी है जो ऐसा नहीं करते। इसका कारण ये है की या तो उनको प्रेशर नहीं बनता या अगर बनता भी है तो सोचते है बाद में चले जायेंगे, अभी थोड़ा ये काम है कर लेते है।
लगभग ये सभी लोग जानते हैं कि सुबह-सुबह उठते ही सबसे पहले टॉयलेट जाना चाहि। लेकिन, सुबह टॉयलेट जाना तो ठीक है पर टॉयलेट कब टॉयलेट जाना चाहिए ये बहुत कम लोग ही जानते हैं।
सुबह उठते ही पहला काम – First Thing in the Morning
सुबह उठते ही आपको सबसे पहले बिना ब्रश और कुल्ला किये 2-3 गिलास गरम पानी पीना चाहिए। गरम पानी पिने से आपके शरीर से रात भर में बने विषैले पदार्थ नष्ट होते है। आप चाहे तो पानी में निम्बू का रस भी मिला सकते है। बहुत से लोग तो शहद मिला कर भी पीते है। बिना मंजन किये पानी पीने से रात भर मुँह में जमा लार पानी के साथ पेट में चली जाती है।
आयुर्वेद में सुबह की लार को सोने से भी ज्यादा कीमती और महत्वपूर्ण बताया गया है। लार में टायलिन नामक एंजाइम पाया जाता है जो हमारी पाचन क्रिया को तुरुस्त करता है। इसमें पोटैशियम, कैल्शियम, प्रोटीन और ग्लूकोज जैसे तत्व पाए जाते है।
पानी जब भी पिए घूंट घूंट करके पिए। घूंट-घूंट पानी पिने से पानी के साथ मुँह की लार पेट में चली जाती है। लार क्षारीय (alkaline) होता है और पेट में हमेशा अम्ल (acid) बनता है। क्षार और अम्ल एक दूसरे के दुश्मन है।
क्षार, अम्ल में मिले या अम्ल, क्षार में, दोनों के मिलने पर इसका असर उदासीन (neutral) हो जाती है। वैसे ही अगर लार पानी के साथ मिलके पेट में जाती है और पेट के अम्ल को शांत करती है। जिसके पेट का अम्ल शांत रहता है उनकी ज़िन्दगी में रोग आ ही नहीं सकता।
शौच की अवस्था – Toilet Position
शौच के दौरान उकड़ूं बैठने की तुलना में टांगें नीची करके बैठने पर अत्यधिक ज़ोर लगाना पड़ता है, और समय भी ज़्यादा लगता है। जब हम उकड़ूं बैठकर शौच का इस्तेमाल करते है उस समय हमारी टांगें हमारे शरीर से 35 डिग्री के कोण पर बनती है। जबकि, वेस्टर्न टॉयलेट में ऐसा होना मुमकिन नहीं है।
वेस्टर्न टॉयलेट सीट पर बैठने के दौरान हमारी गुदा नलिका 90 डिग्री के कोण पर होती हैं। उकड़ूं बैठकर कर शौच करने से टांगें हमारे शरीर से 35 डिग्री के कोण पर होती हैं। ऐसे बैठने से हमारी मांसपेशियां पेट पर दबाव डालती हैं।
जबकि वेस्टर्न टॉयलेट में पेट और मल का सारा भार मलाशय और उसके आसपास की नसों पर होता है, जिसकी वजह से शौच के लिए ज़्यादा जोर लगाना पड़ता है और इससे नसों में सूजन आ जाती है।
उकड़ूं बैठने पर बड़ी आंत की अंदरूनी गुहाओं में दबाव बनता है। जिससे पेट आसानी से साफ हो जाता है। जबकि वेस्टर्न टॉयलेट का इस्तेमाल करने से कब्ज़, अमाशय में गड़बड़ी, हर्निया और बवासीर जैसी बीमारियां हमे अपना शिकार बना लेती है।
शौच का सही समय – Right Time for Toilet
आयुर्वेद में टॉयलेट जाने का उचित समय सूर्योदय से पहले का है। इससे आपकी सेहत दुरुस्त ररहती है। सुबह 5 से 6 के बीच शौच जाना उचित माना जाता है। क्यूंकि इस समय हमारे शरीर में वायु का प्रकोप ज्यादा होता है, जो मल को सही ढंग से बाहर निकलने में मदद करता है।
इसलिए इस समय मल त्याग करना बेहद सुलभ हो जाता है। इस बात का ध्यान जरूर रखें की जो व्यक्ति जितनी देर से मल त्याग करता है उसे उतनी ही देर तक शौचालय में बैठना पड़ता है, जिससे आंतों एवं गुदा को अत्यंत हानि होती है।
समय पर शौच ना जाने से ना केवल कब्ज की समस्या होती है बल्कि इसी कब्ज के कारण बवासीर जैसी बीमारी होती है साथ ही आंते भी सड़ने लगती हैं। सुबह सही समय पर शौच ना जाकर हम केवल खुद का स्वास्थ्य ही ख़राब नहीं कर रहे हैं बल्कि और भी कई गंभीर बीमारियों को भी न्यौता दे रहे हैं।
अगर सुबह पेट साफ ना हो तो पूरा दिन बैचेनी भरा गुजरता है। सुबह के समय शौच जाना बहुत ही जरूरी होता क्योंकि अगर ऐसा नहीं हुआ तो इससे आपको दिन भर की सभी गतिविधियों को सुचारू रूप से करने में बाधा पैदा हो सकती है।
आज के वक्त में बहुत से लोग सुबह देर से उठते हैं और बिना फ्रेश हुए ही नाश्ता कर लेते हैं, जिसके कारण अपच और कब्ज की समस्या बहुत आम हो चुकी है।
इंडियन या वेस्टर्न टॉयलेट – Indian Vs Western Toilet
रिसर्च और शोध ये बताते है की बेशक वेस्टर्न टॉयलेट देखने में सुंदर और आरामदायक है लेकिन इसके कई सारे नुकसान भी हैं। वहीं सेहत के हिसाब से इंडियन टॉयलेट आपके शरीर के लिए काफी फायदेमंद है। जब आप इंडियन टॉयलेट में बैठते हैं तो आपके पूरे पाचन तंत्र पर दबाव बनता है जिससे आपका पेट अच्छे से साफ होता है।
अगर आपका पेट साफ रहेगा तो आप कई बीमारियों से तो बचेंगे ही साथ ही तनाव भी कम होगा। पेट अच्छे से साफ ना हो तो इससे हमें कई बिमारियों के होने का खतरा बना रहता है साथ ही इससे शरीर में तनाव भी बना रहता है। पेट साफ करने में टॉयलेट सीट का काफी योगदान होता है और यह आपकी सेहत पर भी असर डालती है।
वेस्टर्न और इंडियन टॉयलेट का इस्तेमाल आपकी तबियत पर प्रभाव डालता है। लेकिन लोगों का सवाल होता है कि वेस्टर्न टॉयलेट या इंडियन टॉयलेट में से सेहत के लिए ज्यादा ठीक कौनसा होता है। चलिए जानते है वेस्टर्न टॉयलेट या इंडियन टॉयलेट के फायदे और नुकसान के बारे में।
• इंडियन टॉयलेट में आप उठते-बैठते हैं और हाथों का इस्तेमाल करते हैं। जिससे आपका ब्लड सर्कुलेशन सही बना रहता है। इसके अलावा आपके हाथ-पैरों और मांसपेशियों में होने वाले दर्द से छुटकारा मिलता है। जबकि वेस्टर्न टॉयलेट में आप आराम की मुद्रा में बैठते हैं जिससे आप ज्यादा मुवमेंट नहीं कर पाते।
इंडियन टॉयलेट इस्तेमाल करने से आपके पूरे पाचन तंत्र पर दबाव बनता है जिससे आपका पेट अच्छे से साफ होता है। वही दूसरी ओर वेस्टर्न टॉयलेट में आप आराम से बैठते है जिसके कारण दबाब कम बनता है और पेट साफ नहीं हो पाता है और कई बार पाचन सम्बन्धी समस्याएं पैदा हो जाती हैं।
ऐसा माना जाता है कि जिस तरह से हम इंडियन टॉयलेट में बैठते हैं, इस स्थिति में रक्त परिसंचरण अच्छी तरह से होता है और इससे आपके हाथों और पैरों का व्यायाम भी होता है।
• वेस्टर्न टॉयलेट में ज्यादा पानी का इस्तेमाल होता है, बावजूद उसके गुदा की सही से सफाई नहीं हो पाती। लोग टॉयलेट करने के बाद गुदा द्वार साफ करने के लिए टॉयलेट पेपर का इस्तेमाल करते है। वही दूसरी तरफ इंडियन टॉयलेट में सफाई के लिए कम पानी का इस्तेमाल होता है और सफाई भी अच्छे से हो जाती है।
• गर्भवती महिलाओं के लिए भी इंडियन टॉयलेट का इस्तेमाल करना काफी फायदेमंद होता है। लगातार इसका इस्तेमाल करने से यह सामान्य प्रसव में मददगार साबित होता है। भारतीय शौचालयों का उपयोग गर्भवती महिला को प्राकृतिक प्रसव (Normal delivery) अधिक आसान और सुरक्षित बनाने में मदद करता है।
• इंडियन टॉयलेट आपको पेट से संबंधित कोलन कैंसर और अन्य बीमारियों को रोकने में फायदेमंद होता है। इंडियन टॉयलेट सीट में बैठना हमारे शरीर में कोलन से मल को पूरी तरह से निकालने में मदद करता है। इस प्रकार यह कब्ज, एपेंडिसाइटिस, कोलन कैंसर और अन्य प्रकार की बीमारियों की संभावनाओं को कम करने में मदद करता है।
• इंडियन टॉयलेट पर्यावरण के अनुकूल होते हैं क्यूंकि जब आप वेस्टर्न टॉयलेट का उपयोग करते हैं तो इसके साथ आपको टॉयलेट पेपर की आवश्यकता होती है जिससे कागजों की बर्बादी होती है। वेस्टर्न टॉयलेट का उपयोग करने पर पानी भी अधिक मात्रा में खर्च किया जाता है।
जबकि इंडियन टॉयलेट का उपयोग करने पर आपको बहुत ही कम मात्रा में पानी की जरूरत होती है और आप साबुन या हैंड वाश का उपयोग करके अपने हाथ और खुद को स्वच्छ भी रख सकते हैं। इंडियन टॉयलेट का उपयोग करने पर आपको किसी भी प्रकार के पेपरों को बर्बाद करने की जरूरत नहीं होती है। इसलिए इंडियन टॉयलेट का उपयोग किया जाना फायदेमंद होता है।
• इंडियन टॉयलेट का उपयोग आपको मूत्र पथ संक्रमण या यूटीआई आदि की संभावनाओं से बचाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इंडियन टॉयलेट में आपका सीट से सीधा संपर्क नहीं होता। आप अपने पैरों के सहारे इंडियन टॉयलेट का उपयोग करते, जबकि वेस्टर्न टॉयलेट से आपका सीधा संपर्क होता है जिसके कारण आपको मूत्र पथ संक्रमण या यूटीआई आदि संक्रमणों का खतरा बना रहता है।
टाइम का भी रखें ध्यान – Keep Track of Time too
टॉयलेट में बैठने की पोजिशन के बाद, जो सबसे ज़रूरी चीज़ है, वो ये है कि टॉयलेट ज्यादा से ज्यादा कितना समय बिताना चाहिए? ये सवाल इसलिए भी अहम है क्योंकि लोगों ने टॉयलेट को ब्रेक की जगह बना लिया है। लोग यहाँ मोबाइल पर गेम खेलते है, चैटिंग करते है या अख़बार तक पढ़ते है, जबकि टॉयलेट में 10 मिनिट से ज़्यादा का समय गुज़ारना ख़तरनाक हो सकता है।
टॉयलेट में फ़ोन का इस्तेमाल करने वालों को ये जानना ज़रूरी है कि टॉयलेट की वजह से आपका फोन और आपके फोन से आपके शरीर तक 18 गुना अधिक बैक्टीरिया और जर्म्स आप तक पहुंचकर आपको अतिसंवेदनशील और बीमार बना सकते है।
टॉयलेट में ज्यादा समय बिताने से मलाशय पर दबाव बनता है जिससे मलाशय कमज़ोर हो जाता है और कई बार लोग बवासीर, कब्ज़, अमाशय में गड़बड़ी और हर्निया जैसी बिमारियों का शिकार हो जाते हैं।
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आज के लेख में मैंने आपको बताया की टॉयलेट के समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए, इंडियन टॉयलेट के फायदे क्या क्या हैं (indian toilet vs western toilet), आयुर्वेद में उषापान के फायदे क्या हैं (ushapan in ayurveda), सुबह खली पेट गरम पानी पीने से क्या होता है, सुबह का पानी कैसे पीना चाहिए इत्यादि।
आयुर्वेद सबके लिए है (Ayurveda for everyone) तो इस हिसाब से आयुर्वेद के नियम भी सबको मानने चाहिए। उम्मीद करती हूँ आपको मेरा आज का यह लेख – आयुर्वेद के अनुसार टॉयलेट करने के नियम : Toilet Rules According to Ayurveda रोचक और जानकरी से परिपूर्ण लगा होगा। अपने सुझाव तथा किसी सवाल के लिए आप मुझे कमेंट कर सकते हैं। पोस्ट पसंद आई हो तो इसे शेयर करना बिलकुल भी ना भूलें ताकि ऐसी जानकारियां सभी तक पहुचें।